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कारक-विचार

           संस्कृत में संज्ञाओं की सात विभक्तियाँ होती है। सर्वनाम-्विचार तथा विशेषण –विचार से भी ज्ञात हो चुका है कि सर्वनाम और विशेषण की भी सात विभक्तियाँ होती है। इन विभक्तियों का क्या प्रयोग होता है, यह अब जानेगे।                              ‘कारक’ का अर्थ है, ऐसी वस्तु जिसका क्रिया के पुरा करने में काम पड़े। उदाहरण के लिए ‘अयोध्या में रघु ने अपने हाथ से लाखों रुपये ब्राह्मणों को दान दिए’ इस वाक्य में दान क्रिया के पुरा करने के लिए जिन-जिन वस्तुओं का उपयोग हुवा , वे ‘कारक’ कहलायेगे। दान की क्रिया किसी स्थान पर होती है, । यहाँ ‘अयोध्या’ में हुई, इसलिए ‘अयोध्या’ कारक हुई। इस क्रिया के करने वाले रघु थे, इसलिए ‘रघु’ कारक हुए। यह क्रिया हाथ से पुरी की गई, इसलिए ‘हाथ’ कारक हुआ, ‘रुपये’ दिये गये, इसलिए ‘रुपये’ कारक हुए। और ब्राह्मणों को दिए गये, इसलिए ‘ब्राह्मण’ कारक हुए।                              क्रिया के पुरा करने के लिये इस प्रकार ६ सम्बन्ध होते है, क्रिया का करने वाला-   कर्ता क्रिया का कर्म-            कर्म क्रिया जिसके द्वारा पुरी हो- करण क्रिया जिसके लिए