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संज्ञा-विचार

                                  वाक्य भाषा का आधार है, और शब्द वाक्य का। संस्कृत में शब्द दो प्रकार के होते है, एक तो एसे जिनका रुप वाक्य के और शब्दों के कारण बदलता रहता है, और दुसरे ऐसे जिनका रुप सदा समान ही रहता है। न बदलने वालों में ‘यदा’   ‘कदा’ आदि अन्वय है, तथा ‘कर्तुम’   ‘गत्वा’ आदि कुछ क्रियाओं के रुप है। बदलने वालों शब्दों में संज्ञा, विशेषण, सर्वनाम, क्रिया आदि है।                    हिन्दी की भांति संस्कृत में तीन पुरुष होते है, -   १,उत्तम पुरुष, २, मध्यम पुरुष और ३. प्रथम पुरुष । प्रथम पुरुष को अन्य पुरुष भी कहते है। हिन्दी में केवल दो वचन होते है- एकवचन और बहुवचन । किन्तु संस्कृत में इसके अतिरिक्त एक द्विवचन भी होता है। जिससे दो चीजों का बोध कराया जाता है। सभी संज्ञाएँ अन्य पुरुष में होती है।                    संज्ञा के तीन लिंग होते है- पुल्लिंग , स्त्रीलिंग , तथा नपुंसकलिंग । संस्कृत भाषा में यह लिंग-भेद किसी स्वाभाविक स्थिति पर निर्भर नही है। ऐसा नही है कि सब नर –वस्तुएँ पुर्ल्लिंग शब्दों द्वारा दिखाई जाए , और मादा वस्तुएँ स्त्रीलिंग शब्दों द्वारा , और नि

स्वर किसे कहते है ?

          ‘स्वर’ का अर्थ है, ऐसा वर्ण जिसका उच्चारण अपने आप हो सके, जिसको उच्चारण के लिए दूसरे वर्ण से मिलने की आवश्यकता न हो। स्वरों का दूसरा नाम ‘अच्’ भी है।                                               व्यंजन ऐसे वर्ण जिसका उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण – अर्थात् स्वर से मिले बिना नही किया जा सकता , व्यंजन कहलाते है।ऊपर ‘क’ से लेकर ‘ह’ तक के सारे वर्ण व्यंजन कहलाते है। क में अ मिला हुआ है। इसका शुद्ध रुप केवल क् होगा। व्यंजन का दूसरा नाम ‘इत्’ भी है,इसी कारण व्यंजनमूलक चिन्ह को भी ‘इत्’ कहते है। स्वर तीन प्रकार के होते है- १, ह्रस्व २, दीर्घ  ३,  मिश्रविकृत दीर्घ।  मिश्रविकृत दीर्घ किन्हीं दो मिश्र स्वरों के मिल जाने से बनता है, जैसे अ+ इ= ए। स्वर के उच्चारण में यदि एक मात्रा समय लगे तो वह ह्रस्व कहलाता है।जैसे –अ, और यदि दो मात्रा समय लगे तो दीर्घ कहलाता है, जैसे- आ, । मिश्र विकृत स्वर दीर्घ होते है। व्यंजनों के भी कई भेद है- १, स्पर्श   २,  अंत;स्थ  ३, उष्म   ४,  परुष व्यंजन   ५,  मृदु व्यंजन।  क से लेकर म तक के वर्ण ‘स्पर्श’ कहलाते है।इसमें  कवर्ण आदि पाँच वर्ग ह