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यास्क का आख्यातज सिद्धान्त

शब्दों का आख्यातज सिद्धान्त का अभिप्राय है कि क्या सभी शब्द धातुओं से बने है या स्वतः निष्पन्न होते है।यास्क इस मत के पोषक है कि सभी शब्द आख्यातज है , जिसे सिद्ध करने के लिए ही सम्पूर्ण निरुक्त की रचना हुई है ।सभी शब्द धातुज है, इस सिद्धान्त के प्रतिपादक है   वैयाकरणाचार्य   शाकटायण       । शाकटायण-     बहुत   अच्छे वैयाकरण है ।इनके सिद्धान्त के अनुसार ही उणादि सूत्रों की रचना हुई है ।जिसकी मूल भित्ति यही है कि सभी शब्दों की व्युत्पत्ति सम्भव है । “सर्वनामधातुजम्’   समस्त निरुक्तकार इस पक्ष में है,   जिसमें यास्काचार्य भी है । वे कहते है ‘नत्वेव न निर्ब्रुयात्’   । गार्ग्य-     प्राचीन वैयाकरण है । उनके सम्मत में कुछ शब्द धातुज है और कुछ रुठ़    ।जिनकी जढ़ में धातु को ढुढना अनावश्यक है ।इसी के साथ यह भी ध्यान रखना चाहिये कि शब्द में धातु ढुँढते समय उस शब्द का अर्थ धातु के संवादी होना चाहिये ।इनके मत से सहमति रखने वाले पाणिनी व पतण्जलि है ।पतण्जलि के अनुसार   उणादयो व्युत्पन्नानि प्रातिपादिकानि   । उणादि के प्रतिपादिक प्रकृति प्रत्यय रहित है । अर्थात वे शब्द रुढ़ है   , उनम