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स्वर-प्रक्रिया

                             उदात्त और अनुदात्त शुद्ध और स्वतंत्र स्वर है। इन्हीं दोनों के मेल से स्वरित की उत्पत्ति होती है। इन सबके चिन्हों के आधार पर लक्षण निम्नलिखित प्रकार के है- उदात्तः- अपूर्वो अनुदात्तपूर्वो वा अतद्धितः उदात्तः। जिससे पूर्व कोई स्वर न हो, अथवा अनुदात्त पूर्व में हो, (स्वरित उत्तर में हो) एसा चिन्ह रहित अक्षर उदात्त होता है। -- अनुदात्त- अणोरेखयाअनुदात्तः ।    अक्षर के नीचे पड़ी रेखा से अनुदात्त स्वर का निर्देश किया जाता है। स्वरित- उर्ध्व रेखया स्वरितः । अक्षर के ऊपर खड़ी रेखा से स्वरित का निर्देश किया जाता है। उदात्तानुदात्तस्य   स्वरितः ।   प्रचय- स्वरितात् परो अतद्धित   एकयुति। स्वरित से परे जिस या जिन अक्षरो पर कोई चिन्ह न हो , उन्हें एकयुति अथवा प्रचय कहते है। स्वर शास्त्र में अक्षर शुद्ध स्वर वर्ण अथवा व्यंजन सहित स्वर का वाचन होता है। यद्यपि स्वर शास्त्र के अनुसार उदात्त आदि स्वर धर्म स्वर वर्णो के ही है। तथापि स्वर निर्देश प्रकरण में चिन्हों के ठीक ज्ञान के लिए व्यंजन विशिष्ट स्वरों का उल्लेख किया जाता है। उनके निर्देश से अभिप्राय