Posts

Showing posts from 2019

काव्यस्य निर्माणे भेदाः

काव्यस्य निर्माणे भेदाः       प्रश्नः ;- कविसृष्टौ  ब्रह्मासृष्टौ च को भेदो अस्ति ? उत्तर -      ‘’अपारे काव्यसंसारे  कविरेकः प्रजापतिः  ।                  यथास्मै रोचते विश्वं तथेदं परिवर्तते  ।‘’ भेदः निरुप्यते  । मम्मटाचार्येण कथ्यते –              ‘’नियतिक्रतनियमरहितां  ह्रदिकामयीमनन्यपरतां               नवरसरुचिरां निर्मितिमादधती भारती कवेजयति ।‘’       कविसृष्टौ  ब्रह्मसृष्टौ च प्रथमः भेदः एषः वर्तते  यं कविसृष्टिः नियत्यासाधारणधर्मेण कृतः यः नियमरहितां  ।किन्तु ब्रह्मासृष्टिः प्रकृत्या कृतः नियमसहितां ।नियति अस्य शब्दस्य द्वौ अर्थौ वर्तते । प्रथमः नियम्य सौरभादयो धर्मा अनया इति तितिरसाधारणो धर्मः पद्मत्वादिरुपः । यथा ब्रह्मसृष्टि  विश्वकर्मा ब्रह्मा कस्मिश्चिदपि विशिष्टवस्तुनि ते मौलिकगुणरुपौ वर्णयते परं कविः कल्पनालोके गम्यति सः स्वकल्पनानुरुपः स्त्रियः मुखे कमलासौरभस्य तस्याः नेत्रयोः कमलस्य सौन्दर्यस्य निर्माणे समर्थयते । अतः कविसृष्टिः नियत्या रचित नियमेन रहिताम् ।       ‘’ नियति ‘’ अस्य शब्दस्य द्वितीयो अर्थो अदृष्टो अस्ति । ब्रह्मसृष्टौ नरेण स्वकीयं पूर्वजन

गीतिकाव्य

   मया विचार्यते यत् कस्यापि साहित्यस्य सर्वाधिक रमणीयमड़्गम्  तस्य गीतिकाव्यं भवति । यतो हि सत्यं शिवसुन्दरमिति भावत्रयस्य  यादृशी कोमलाभिव्यक्तिः गीतिकाव्ये भवति  तादृशी अन्यत्र दुर्लभा   ।      अतः संस्कृतस्य गीतिकाव्यं अत्यन्तं समृद्धं वर्तते । अस्य गुणसमृद्धिः दीर्घकालीन विकास परम्पराया परिणाम एव अस्ति ।         ऋग्वेदे यत्र तत्र प्रस्फुटित अयं निर्झरणी नैकविध व्यापक घटनायां परिणाम स्वरुपेण अनेकाषु अवस्थासु प्रवहमाना जनमानसस्य सहस्त्रधारा प्रवतेः सड़गमभवाप्य भावाणां शान्त समतल भूमौ कलकलनिनादेन प्रसरतिस्म  ।        असंख्ये मनीषिभिः अस्यां मन्दाकिन्यां अवहानं कृतम् असंख्यैश्च मनुपुत्रैः अस्य रसामृतस्य आस्वादने कृतकारितम् च  । कतिपयः संहवयैनिष्णातैः स्थलविशेषेसु अवगाह्य भक्ति श्रृंगार रसाप्लावितनाय गीतिकाव्यः ।        गीतिकाव्यानाम् सृष्टिं कृता संस्कृत गीतिकाव्यानाम् उदात्त स्वरुप दर्शनम् श्रृंगाष्टिक गीतिकाव्येषु धार्मिक स्तोत्रेषु दृष्टिपथं आयाति ।नां समीक्षणात् इदंतु निश्चयम् यत् संस्कृत भाषाया विकासे प्रचारे यतस्य प्राणधारणाय महत् योगदानम् वर्तते यत्  ।        गीति

संस्कृत भाषा का अनमोल खजाना

संस्कृत भाषा का अनमोल खजाना संस्कृत भाषा के इस खजाने में कई अमूल्य रत्न छुपे है , बस जरुरत है उन रत्नों को ढूँढ निकालने संस्कृत भाषा सबसे प्राचीन अमूल्य अनोखी अवर्णनीय अतुल्य भाषा है ।संस्कृत भाषा संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल एक भाषा है  , प्राचीन भारतीय ज्ञान इसी भाषा में है ।अतः इसे वैकल्पिक विषय के रुप में नही बल्कि एक अनिवार्य विषय के रुप में शामिल किया ✓जाना आवश्यक है ।         देश में एक ऐसा वर्ग बन गया है जो कि संस्कृत भाषा से शून्य है  परन्तु उनकी छद्म धारणा यह बन गई है कि .. संस्कृत में जो कुछ भी लिखा है वे सब पूजा पाठ के मण्त्र ही होगें , इसका एकमात्र कारण उन्होंने कभी संस्कृत भाषा का अध्ययन ही नही किया ।उन्हें इस बात का अंश मात्र भी ज्ञान नही है कि संस्कृत के इस विशाल भंडार में विपुल खजाने में क्या क्या वर्णित है एवं कितना कुछ ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है ।अब आपको एक छोटा सा उदाहरण बताना चाहती हूँ  जिसको पढ़ कर आप इतना तो समझ ही जायेगे कि इस भाषा में कितना कुछ है –     चतुरस्त्रं मण्डलं चिकीर्षन् अक्षयार्थं मध्यात्प्राचीमभ्यापातयेत्      यदितिशिष्यते तस्य स

राघवयादवीयम्राघव - एक अदभूत एवं अलौकिक ग्रन्थ (HARE RAMA HARE KRISHNA )

                                                राघवयादवीयम् हमारे सनातन धर्म में एक ग्रन्थ ऐसा भी है  - इसे तो सात आश्चर्यो में से पहला आश्चर्य माना जाना चाहिये – यह है दक्षिण भारत का एक ग्रन्थ – क्या ऐसा संभव है जब आप किताब को सीधा पढ़े तो रामायण की कथा पढ़ी जाय और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण भागवत की कथा सुनाई दें । (Raghavayadaviyam There is also a book in our Sanatan Dharma - this should be considered as the first of the seven wonders - this is a book in South India - is it possible that when you read the book directly, the story of Ramayana should be read and when in the same book If you read the written words in reverse, then tell the story of Krishna Bhagwat.)   कांजीपुरम के ११वी शदी के कवि श्री वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ ‘’राघवयादवीयम्’’ एक अदभूत ग्रन्थ है  । इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम –विलोम’ काव्य भी कहा जाता है । पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है  राघव (राम) यादव (कृष्ण) के चरित्र को बताने वाली गाथा  राघवयादवीयम् उदाहरण के तौर पर पहला श्