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Happy birthday to you in sanskrit

अद्य विश्व संस्कृत दिवसं अस्ति। मतलब आज विश्व संस्कृत दिवस है। अतः आज पुरे विश्व में विश्व प्रसिद्ध गाना जो गाया जाता है उसको हम संस्कृत में गाते हैं। हैप्पी बर्थडे टू यू। शुभं  जन्म दिनं तुभ्यं । शुभं जन्म दिनं तुभ्यं। शुभं जन्म दिनं तव हे । सकलं सफलं भूयात्। शुभं जन्म दिनं तुभ्यं। सकलं च सफलं भूयात् । शुभं जन्म दिनं तुभ्यं। शुभं जन्म दिनं तुभ्यं । शुभं जन्म दिनं‌ तव हे ।

एक सुंदर श्लोक

स्कंद पुराण में एक सुंदर श्लोक  है अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम् न्यग्रोधमेकम्  दश चिञ्चिणीकान्। कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च* *पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।। अश्वत्थः = पीपल (100% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है) पिचुमन्दः = नीम (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है) न्यग्रोधः = वटवृक्ष(80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है) चिञ्चिणी = इमली (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है) कपित्थः = कविट (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है) बिल्वः = बेल(85% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है) आमलकः = आवला(74% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है) आम्रः = आम (70% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है) (उप्ति = पौधा लगाना)         अर्थात्- जो कोई इन वृक्षों के पौधो का  रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नही करना पड़ेंगे।        इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज इस परिस्थिति के स्वरूप में नरक के दर्शन हो रहे हैं।  अभी भी कुछ बिगड़ा नही है, हम अभी भी अपनी गलती सुधार सकते हैं। *औऱ*       गुलमोहर, निलगिरी- जैसे वृक्ष अपने  देश के पर्यावरण के लिए घातक हैं।         पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर हम ने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है।            पीपल,

ENGLISH V/S संस्कृत (SANSKRIT)

अंग्रेजी में 'THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG' एक प्रसिद्ध वाक्य है। कहा जाता है कि इसमें अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर समाहित कर लिए गए , जबकि यदि हम ध्यान से देखे तो आप पायेंगे कि , अंग्रेजी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर ही उपलब्ध हैं, जबकि उपरोक्त वाक्य में 33 अक्षर प्रयोग किये गए हैं, जिसमे  चार बार O का प्रयोग A, E, U तथा R अक्षर के क्रमशः 2 बार प्रयोग दिख रहे हैं ।अपितु अक्षरों का क्रम भी सही नहीं है। आप किसी भी भाषा को उठा के देखिए, आपको कभी भी संस्कृत जितनी खूबसूरत और समृद्ध भाषा देखने को नहीं मिलेगी । संस्कृत वर्णमाला के सभी अक्षर एक श्लोक में व्यवस्थित क्रम में देखने को मिल जाएगा               क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोऽटौठीडढण:।               तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोऽरिल्वाशिषां सह।। अनुवाद -  पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सृजन कर्ता कौन? राजा मय कि जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं। संस्कृत भाषा वृहद और समृद्ध भाषा है, इसे ऐसे ही देववाणी नहीं कहा जाता है ।

योग एक दैवीय शक्ति

         योग से तात्पर्य आध्यात्मिक सुख प्राप्त करने से नही है ।योग एक क्रिया है । विभिन्न आसनों के द्वारा योग करने से शरीर स्वस्थ और तंदुरुस्त रहता है । सुबह ब्रह्म मुहुर्त में ही योग की क्रिया की जाती है , क्योंकि ब्रह्म मुहुर्त में किया हुवा योग मन और शरीर दोनों को स्वस्थ रखता है ।योग करने से आपका शरीर तो स्वस्थ रहता ही है साथ ही आपका मन भी प्रसन्न रहता है । योग सिर्फ विभिन्न आसन ही नही बल्कि मन पर नियंत्रण करना भी सिखाता है । यदि मन पर नियंत्रण कर लिया तो कई समस्याओं से बचा जा सकता है , कई रोगों से दूर रहा जा सकता है ।जीवन की समस्याओं का हल भी योग में छुपा हुवा है ।         मनुष्य को आध्यात्मिक उन्नति के लिये मन और इन्द्रियों का निग्रह करना आवश्यक है ।योग की महिमा अनेक उपनिषदों में गाई गई है । कठ में लिखा है –                                  यदा पंचावतिष्ठन्ते ज्ञानानि मनसा सह ।                                बुद्धिश्च न विचेष्ठते तामाहुः परमां गतिम् ।                              तां योगमिति मन्यन्ते स्थिराभिन्द्रियः धारणाम्                                       

उपनिषदों में रहस्यवाद

ब्रह्म के वर्णन में उपनिषद कभी कभी बड़ी रहस्यपूर्ण भाषा का आश्रय लेते है   । भारतीय रहस्यवाद का श्रोत उपनिषद ही है । ईशोपनिषद कहता है , ‘वह ब्रह्म चलता है , वह नही चलता, वह दूर है , वह पास भी है, वह सबके अन्दर है , वह सबके बाहर है ‘ । अपने आराध्य के विषय में इस प्रकार की अनिश्चित भाषा का प्रयोग रहस्यवाद का बाह्य लक्षण है । ध्यान-मग्न साधक   अपने प्रेमास्पद   का , अनंत ज्योतिर्मय आत्म तत्व का , साक्षात्कार करता है । मानव स्वभाव से प्रेरित होकर वह उस साक्षात्कार की अनुभूति को वाणी में प्रगट करना चाहता है । परन्तु सीमित भाषा असीम का वर्णन कैसे कर सकती है ? अनंत प्रेम , अनंत सौन्दर्य और अपार आनन्द को प्रगट करने के लिये मानव भाषा में शब्द नही है   । प्रियतम को देखने और आत्मसात करने का जो असीम उल्लास , उसकी रुपशिखा के प्रत्यक्ष का जो अपरिमित आश्चर्य है, वह सीमित और व्यवहारिक मस्तिष्कों से निकली हुई भाषा से परे है ।     यही रहस्यवादियों की चिरकालिक कठिनाई है , यही कारण है कि हमें कबीर जैसे कवियों की वाणी अटपटी और अद्भूत प्रतीत होती है । इसी कारण उपनिषदों की भाषा सीधी और सरल होते हुवे

क्या उत्तररामचरित ट्रेजेडी है ?

क्या उत्तररामचरित ट्रेजेडी है   ?   ‘’एको रस; करुण एव निमित्त भेदाद्   भिन्न; पृथक्पृथगिव श्रयते विवर्तान्   आवर्तबुद्बुदतरड़्गमयान् विकारान् अम्भो यथा सलिलमेव हि तत्समस्तम्   ।          प्रस्तुत श्लोक में तमसा के माध्यम से भवभूति अपना मत प्रदर्शित करते है कि ‘’करुण ही एक रस है ‘’ अन्य रस तो उसी के विकार है । यह कथन रस के सम्बन्ध में नये सम्प्रदाय को चलाने का प्रयत्न नही है । रसवादी नवरस मानते है और वे सब भवभूति के नाटको में भी दृष्टिगोचर होते है । वे स्वयं नाटम में सभी रसो के प्रयोग को मानते है – ‘’भूम्ना रसानां गहनाः प्रयोगाः   । मालतीमाधव   १-४        इस प्रकार इस कथन का महत्व नाटक की उस विशिष्ट घटना के संदर्भ में ही है – तमसा का कथन है कि राम और सीता की यह परिस्थिति जिसमें वे ह्रदय से निकट होते हुवे भी इतने दूर थे बहुत ही करुणापूर्ण है । यह कथन संपूर्ण राम कथा के विषय में भी ठीक ही है । राम तथा सीता के जीवन की विभिन्न घटनाओं में प्रेम, वीरता , अदभूत , भय आदि रसों का दर्शन होता है , पर कथा का प्रधान रस तो करुण ही है । भवभूति केवल यही सूचित करते है कि यही बात उत्तरर