ऋग्वेद एक संक्षिप्त परिचय
ऋग्वेद
प्राचीन साहित्य की सबसे प्राचीन रचना है । प्राचीनतम मनुष्य के मस्तिष्क तथा धार्मिक
और दार्शनिक विषयों का मानव भाषा में सबसे पहला वर्णन ऋग्वेद में मिलता है ।मनुष्य
की आदिम दशा के और भी चिह्न पाये जाते है । चारों वेदों में ऋग्वेद का स्थान मुख्य
है ऋग्वेद अन्य वेदों की अपेक्षा अधिक प्राचीन है, तथा इसमें अन्य वेदों की अपेक्षा
अधिक विषयों का सन्निवेश है । यजुर्वेद और सामवेद में याज्ञिक मंत्रों की प्रधानता
है ।ऋग्वेद में वैदिक काल की सारी विशेषताओं के अधि विशद और पूर्ण वर्णन मिल सकते है
।
ऋग्वेद
की भाषा उत्तर प्राचीन संस्कृत से बिल्कुल भिन्न है, ऋग्वेद के मंत्रों में सुन्दर
कविता पाई जाती है ।वह कविता जो हिमालय से निकलने वाली गंगा नदी के समान ही पवित्र
और नैसर्गिक है। जिसमे कृत्रिमता नही है। तर्क
शास्त्र से सुरक्षित तेजस्वी षड्दर्शनों एवं दार्शनिक सिद्धान्तों को प्राप्त करने
के लिये ऋग्वेद की तेजस्वी वाणी अत्यन्त सहायक सिद्ध होती है । वेद ईश्वर की वाणी और
ज्ञान के अक्षत भंडार है ।
वेद मंत्रों का संकलन बडे सुन्दर
और वेज्ञानिक ढंग से किया गया है। एक विषय के कुछ मंत्रों के समुह को सुक्त या स्तोत्र
कहते है ।ऋग्वेद इसी प्रकार के सुक्तों का संग्रह है , ऋग्वेद के कुल सुक्तों की संख्या
लगभग ३०२८ है ।सबसे बडे सुक्त में १६७ मंत्र है, और सबसे छोटे में केवल दो ।कुल मंत्रों की संख्या लगभग ३०,०००
है ।सम्पूर्ण ऋग्वेद मंडलो , अनुवाको, सुक्तों और मंत्रों में विभक्त है ।ऋग्वेद में
१० मंडल है, प्रत्येक मंडल में कई अनुवाक होते है और हर अनुवाक में अनेक सुक्त । वेद
को ६अंगो सहित पढ़ना चाहिये, किसी मंत्र को उसके ऋषि , छंद और देवता को बिना जाने पढ़ने
से पाप लगता है ।
ऋग्वेद के अधिकांश सूक्त देवताओं
की स्तुति में लिखे गये है ।सबसे पहले अग्नि की स्तुति में लिखे हुवे सूक्त आते है,
फिर इन्द्र के सूक्त , उसके बाद किसी भी देवता के स्तुति –विषयक सूक्त जिनकी संख्या
सबसे ज्यादा हो , रक्खे जाते है । यदि दो
सूक्तो में बराबर मंत्र हो तो बड़े छंद वाला सूक्त पहले लिखा जायगा , अन्यथा ज्यादा
मंत्रो वाला सूक्त पहले लिखा जाता है । लगभग ७००-८०० सूक्तो का विषय देव-स्तुति है,
बाकी २००-३०० सूक्तो में अन्य विषय आ जाते है । कुछ सूक्तो में शपथ शाप, जादू, टोना
,आदि का वर्णन है, कुछ सूक्तो में विवाह , मृत्यु आदि संस्कारो का वर्णन है दसवे मंडल
में विवाह संबंधी सुन्दर गीत है, उपनयन संस्कार का नाम ऋग्वेद में नही है ।
कुछ सूक्तो को पहेली सूक्त कहा जा सकता है
। वह कौन है जो अपनी माता का प्रेमी है, या अपनी बहन का जार है । उत्तर- सूर्य ।द्युलोक
के वाचक होने के कारण उषा और सूर्य भाई बहन है, जिन में प्रेम संबंध है ।सूर्य द्यो
(आकाश) का प्रेमी भी है । ‘माता के प्रेमी
से मैने प्रार्थना की , बहिन का जार मेरी प्रार्थना सुने , इन्द्र का भाई और मेरा मित्र
इत्यादि । गणित सम्बन्धि पहेलिया महत्वपूर्ण है ।
ऋग्वेद
में एक द्युत सूक्त है, एक सूक्त में मेंढकों का वर्णन है, एक अरण्य सूक्त या वन सूक्त
है । चोथे मंडल में घुड़दोड़ का जिक्र है । सरमा और पणियों की कहानी शायद नाटक की भाँति
खेली जाती थी। सरमा एक कुतियाँ थी, जो देवताओं के गायों की रक्षा करती थी , एक बार
पणि लोग गायों को चुरा ले गये, सरमा को पता लगाने भेजा गया । सरमा ने गायों को खोज
निकाला , और इन्द्र उन्हें छुडा लाये ।ऋग्वेद
में एक कवियित्री का वर्णन है, जिसका नाम घोषा था ।उनके शरीर में कुछ दोष थे, जिन्हें
उसने अश्विनीकुमारों को प्रार्थना करके ठीक करा लिया ।घोषा के अतिरिक्त विश्ववरा वाक्
लोपामुद्रा आदि स्त्री कवियों के नाम ऋग्वेद में आते है ।
यज्ञों के अवसर पर ऋत्विक् लोग
देवताओं की स्तुतियाँ करते थे ।ऋग्वेद को जानने वाला ऋत्विक ‘होता’ , यजुर्वेद को जानने
वाला ‘अध्वर्यु’, और सामवेद को जानने वाला ‘उद्गाता’ कहलाता था ।अथर्वेद के ऋत्विक्
को ‘बह्मा’ कहते थे ।
वैदिक काल के लोग आशावादी थे ,
वे विजेता होकर भारतवर्ष में आये थे ।जीवन का आनंद, जीवन का संभोग ही उनका ध्येय था
, ‘हम सौ वर्ष तक देखे, सौ वर्ष तक सुनें, और सौ वर्ष तक बलवान बन कर जीते रहे।‘हमारी
अच्छी संतानें हो, हम संपत्तिवान हो।‘ हे अग्नि हमे अच्छे रास्ते पर चलाओं , एश्वर्य
की प्राप्ति के लिये ।इस प्रकार की उनकी प्रार्थना होती थी ।मृत्यु का विचार करना उन्होनें
शुरु नही किया था ।उनका ह्रदय विजय के उल्लास से भरा रहता था , वे यज्ञ करते थे , दान
करते थे और सोमपान करते थे ।दुख और निराशा की भावनाओं से उनका ह्रदय कलुषित नही होता
था । उनकी उषा प्रभात में सोना बखेरा करती थी ।उनकी अग्नि उनका संदेश देवताओं तक पहुँचाती
थी ।इन्द्र युद्ध में उनकी रक्षा करता था, और पर्जन्य उनके खेतों को लहलहाता रहता था
।उस समय की स्त्रियों को काफी स्वतंत्रता थी , उनके बिना कोई यज्ञ , कोई उत्सव पुरा
नही हो सकता था ।आर्य लोगों का विश्वास था कि वे मर कर अपने पितरों के पास पहुँच जायेगे।
देवता लोग अमर है , सोमपान करके, यज्ञ करके हम भी अमर हो जाय , यह उनकी अभिलाषा और
विश्वास था ।
भारत के आर्यों की निरीक्षण शक्ति
तीव्र थी, उनके ज्योतिष संबन्धी आविष्कार इसके प्रमाण है । वे स्वभाव से ही प्रकृति
प्रेमी और सौन्दर्य उपासक थे । वे प्राकृतिक शक्तियों और समाज दोनों में नियमों की
व्यापकता देखना चाहते थे ।प्रकृति के नियमित गति- परिवर्तनों की व्याख्या कैसे की जाय
? आर्यों ने कहा कि प्राकृतिक घटनाओं के पीछे अधिष्ठाता देवताओं की शक्ति है ।उन्होंने
प्राकृतिक पदार्थों में देव भाव और मनुष्यत्व का आरोपण किया । प्राकृतिक घटनाओं और
पदार्थो को देवताओं के नाम से संबोधन करते हुवे भी आर्य लोग उन घटनाओं और पदार्थों
के प्राकृतिक होने को नही भुले । देवताओं की उपासना में वे प्रकृति को नही भुला सके
।प्राकृतिक शक्तियों में उनके व्यक्तित्व का आरोग्य अपुर्ण रहा ।
भाई मस्त पोस्ट है। बस आप headings थोड़ा highlited कर दें तो और सुंदर होगा। तथा ऋग्वेद की रचना कब हुई ये भी स्पष्ट कर दें।
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