ऋग्वेद के दैवता



ऋग्वेद के दैवताओं कों तीन श्रेणियों ने में विभाजित किया है-
१-आकाश या द्यौ के देवता –इस श्रेणी के देवता बहुत महत्वपूर्ण है ।द्यौ , वरुण , सौरमंडल के देवता (सूर्य, अग्नि, पूषण्, और विष्णु)और उषा मुख्य है ।
२-अंतरिक्ष या वायुमंडल के देवता –जैसे इन्द्र, मरुत्, और पर्जन्य।
३-पृथ्वी के देवता-जैसे-अग्नि और सोम । इनके अतिरिक्त उत्तर काल में जब यज्ञों की महिमा कुछ ज्यादा बढ़ गई, तब यज्ञ पात्र मूसल आदि उपयोगी पदार्थ भी देवता होने लगे। कुछ भाव पदार्थ जैसे श्रद्धा , स्तुति आदि में भी देवताओं का आरोपण कर दिया गया । बह्मणस्पति स्तुति का देवता है ।
वरुण-्वैदिक युग में प्रारम्भिक दिनों का सबसे प्रसिद्ध दैवता वरुण है। वरुण वेदों का शांतिप्रिय दैवता है ।यह विश्व का नियंता और शासक है । अपने स्थान में गुप्तचरों से घिरे हुवे बैठ कर वरुण जगत का शासन करता है । वरुण को प्रसन्न करने के लिये अपने नैतिक जीवन को पवित्र बनाना आवश्यक है । वरुण का नाम घृत –व्रत है , यह प्राकृतिक और नैतिक नियमों का संरक्षक है , धर्म के विरुद्ध चलने वालों को वरुण से दण्ड मिलता है  \ प्रकृति और नैतिक जीवन दोनोंपर अखंड नियमों का आधिपत्य है । नियमों की व्यापकता को ऋग्वेद के ऋषियों ने ‘ऋत’ नाम से अभिहित किया है ।ऋत से ही सारा संसार उत्पन्न होता है ।वरुण ऋत का रक्षक है , मनुष्यों के अच्छे बुरे कर्म वरुण से छिपे नही रहते । वह सर्वज्ञ है । वह आकाश में उड़ने वाले पक्षियों का मार्ग जानता है ,वह समुद्र में चलने वाली नावों को जानता है  । वह  वायु की गति को जानता है । वह वरुण हमें सन्मार्ग पर चलाये ।वरुण बारह मासों को जानता है, और जो लौद का महिना पैदा हो जाता है, उसे भी जानता है ।  
                   मित्र नामक सौर दैवता वरुण के हमेशा साथ रहता है ।वेद के कुछ सुक्त मित्रावरुण की स्तुति में है ।वरुण का धात्वर्थ है ‘आच्छादित करने वाला ‘ । वरुण तारों से भरे आकाश को आच्छादित करता है ।इस प्रकार वरुण प्रकृति से संबद्ध हो जाता है ।
                                                सौर मंडल के दैवता
सौर मंडल से संबद्ध दैवता सूर्य , सविता , पूषण और विष्णु है ।मित्र भी सौर दैवताओं में सम्मिलित है ।इन दैवताओं में विष्णु सबसे मुख्य है  । भारत के उत्तरकालीन धार्मिक इतिहास में विष्णु सबसे दैवता बन जाते है ।विष्णु की सबसे बड़ी विशेषता उन्के तीन चरण है, अपने पाद-क्षेपों में विष्णु अर्थात सूर्य पृथ्वी आकाश और पाताल तीनों लोकों में घुम लेते है ।  वामनावतार की कथा का उद्गम ऋग्वेद के विष्णु संबन्धी तीन चरणों का यह वर्णन ही है । विष्णु को उरु क्रम या दूर जाने वाला कहा गया है । विष्णु ‘उरुगाय ‘ है, उनकी बहुत सी प्रशंसा होती है । विष्णु के तीन चरणों में समस्त संसार रहता है ।विष्णु के चरणों में मधु का निर्झर है ।विष्णु तीनोण लोको को धारण करते है ।विष्णु का परम पद खुब भासमान रहता है ।देवताओं के लिये यज्ञ करने वाले मनुष्य विष्णु के लोक में जाते है ।
उषा-आकाश के दैवताओं में उषा का एक विशेष स्थान है । उषा स्त्री देवता है । ऋग्वेद की दूसरी स्त्री देवता अदिति है । जो आदित्यों की जननी है ।ऋग्वेद के कुछ अत्यन्त सुन्दर सुक्त उषा की प्रशंसा में लिखे गये है ।उषा सूर्य की प्रियतमा है ।वह उसे अपना वक्षस्थल दिखाती है ।  वह अचलयौवना तथा अमर है , और अमरता का वरदान देनेवाली है ।नित्य नई रहनेवाली उषा मरणशील मनुष्यों के ह्रदय में कभी-कभी अस्तित्व संबन्धी गंभीर और करुण भाव उत्पन्न कर देती है ।उषा स्वर्ग का दरवाजा खोल देती है ।वह रात्रि की बहन है ।    ऋग्वेद के तीसरे मंडल का ६३वाँ सूक्त है। ऋषि विश्वामित्र है, और छंद ‘त्रिष्टुप ‘ है, उत्तर संस्कृत साहित्य के इंद्रवज्रा’ , ‘उपेन्द्रवज्रा’, आदि छंद इसी से निकले है ।
                   हे उषे देवी यशस्विनि बुद्धि की देवी ,
                             हे विनय शालिनि हमारा हो स्तवन स्वीकार।
                             अहह प्राचीने तुम्हारा हे अचल यौवन ,
                                      विश्व कमनीया नियम से कर रही पद –चार ।
                             स्वर्णमय रथ पर उदित होती अमर देवी ,
                                      मुक्त तुम करती विहंगों का सुरीला गान ।
                             आशु –गति , ओजस्विनि रवि की कनक वर्णे ,
                                      रश्मियाँ करती वहन सुन्दर तुम्हारा पान ।
इन्द्र-जब तक आर्य शांतिपूर्वक रहे  तब तक उनमें वरुण का अधिक मान रहा ।युद्ध की आवश्यकता ने वज्र और बिजली को धारण करने वाले इन्द्र को अधिक प्रसिद्ध कर दिया ।इन्द्र सौ प्रतिशत युद्ध का दैवता है । जिसने उत्पन्न होते ही यज्ञ करके सब दैवताओं में अपने को ऊपर बिठा दिया। जिसके भय से आकाश और पृथ्वी काँपते है, हे मनुष्यों वह वज्रशाली इन्द्र है । जिसने काँपती हुई पृथ्वी को स्थिर किया, जिसने कुपित पर्वतों को रोका , जो अंतरिक्ष और द्यौ को धारण करता है, वह इन्द्र है । जिसने वृत्र नामके सर्प को मारकर सात नदियों को बहाया, जिसने पत्थरों को रगड़  कर अग्नि पैदा की, जो युद्ध में भयंकर है, वह इन्द्र है । इन्द्र की सहायता के बिना कोई युद्ध में नही जीत सकता ।युद्धस्थल में आर्त होकर लोग इन्द्र को पुकारते है , सुदास नाम के आर्य सामंत को शत्रुओं ने घेर लिया था,  वह इन्द्र की पुजा करता था, इसलिये  उसकी जीत हुई , इन्द्र को पृथ्वी और आकाश नमस्कार करते है , उसके भय से पर्वत काँपते है, वह सोमपान करनेवाला है, वह वज्र-बाहु है, और वज्र –हस्त है । जो सोम का रस निकालता है, जो सोमरस को पकाता है, उसे इन्द्र ऐश्वर्य देता है । ‘हे इन्द्र , हम तुम्हारे प्रिय भक्त है’ । हम लोग पुत्रों सहित तुम्हारी स्तुति करें । इन्द्र को ऋग्वेद में कही-कही अहल्या-जार कहा गया है ।मरुद्गण इन्द्र के सहचर है ।
अग्नि-अग्नि वैदिक आर्यो का सर्वाधिक पवित्र दैवता है । ऋग्वेद के लगभग दो  सौ सम्पूर्ण सूक्तों में तथा उसके अतिरिक्त अन्य दैवताओं के साथ सम्मिलित रुप से अनेक सूक्तों में इसकी स्तुति की गई है ।      इसका सम्बम्ध विशेषतया यज्ञ की अग्नि से है । अतएव अग्नि को घृतपृष्ठ , शोचिषकेश , रक्तश्मयु , तीक्ष्णदंष्ट, रुक्तदन्त पुरुष माना गया है । इसकी जिव्हा के द्वारा दैवता हवि भक्षण करते है । दीप्यमान मूर्धा से ज्वालाओं से यह सब दिशाओं में विचरण करता है ।इसकी उपमा अनेक पशुओं से दी गई है । शब्द करते हुवे बैल से इसका अधिक सादृश्य बतलाया है । इसके सींग भी है, जिसको यह तेज करता है  । उत्पन्न हुवा अग्नि बालवत्स के समान है । ऋग्वेद में अग्नि की उत्पत्ति के विषय में बहुत सी कल्पनाएँ की गई है । दो अरणियो को जिनके संघर्षण से अग्नि उत्पन्न होता है, उसका माता पिता कहा गया है    सुखी समिधाओं से , शुष्क काष्ठों से अग्नि का जन्म होता है, और उत्पन्न होते ही वह अपने माता पिता का वध कर देता है ।अग्नि का जन्म दश कन्याओं से माना गया है, अर्थात ये दश कन्याएँ मानवी शरीर में है, और ये दश बहिनें आत्माग्नि को प्रगट करती है । पंच ज्ञानेन्द्रियाँ और पंच कर्मेन्द्रियाँ इस देह में है , और उनके द्वारा यह आत्मा प्रकट हो रहा है । अरणियों के घर्षण से जो अग्नि प्रकट होता है, वह भी दश अँगुलियों से ही घर्षण हौता है । इसे सहस पुत्र भी कहा जाता है, क्योंकि जब अग्नि जलाई जाती है तब मनुष्य को जोर लगाना पड़ता है  । प्रातःकाल के समय अग्नि का बालक रुप हौता है  । अग्नि जल का गर्भ रुप है  जो जल में भी उत्पन्न हौता है ।अग्नि के कही-कही दो जन्म बताये गये है द्युलोक और पृथ्वी लोक  । अग्नि का सम्बन्ध मानवीय जीवन से अधिक है , इसलिये अग्नि को ग्रहपति या अतिथि कहते है  । इसे पुरोहित , होता, अध्वर्य , या ब्रह्मा भी माना जाता है । इसके महत्व का वर्णन अन्य दैवताओं से बढ़कर है । इसकी सार्वभौम शक्तियाँ अनेक बार प्रशंसित की गई है । प्रातःकाल आते ही अग्नि का जन्म हौता है , और वह वैसे ही जमीन से उठता है जै पक्षी वृक्षों से ।अग्नि घी के द्वारा हव्य भक्षण करता है  । अतएव घृतजिव्ह कहलाता है , इसके अतिरिक्त वैश्वानर , धनंजय , जातवेदा, तदून्पाद, रोहिताश्व, हिरण्यरेता, सप्तार्चि , सप्तजिव्ह, सर्वदेवमुख, आदि अनेक नामो से पुकारे जाते है  । यह जहाँ उत्पन्न हौता है, वही नष्ट भी हौता है ।अतः अग्नि को पितृहन्ता भी कहा जाता है । इस प्रकार ऋग्वेद के २०० मंत्रों में अग्नि का भिन्न भिन्न प्रकार से वर्णन किया गया है ।
एक देववाद की ओर – ऋग्वेद के प्रारम्भिक ऋषियों ने जगत को आकाश अंतरिक्ष और पृथ्वी लोक मे विभक्त करके उनमें भिन्न भिन्न दैवताओं को प्रतिष्ठित कर दिया था ।विश्व को इस प्रकार खंड खंड कर डालना समीचीन नही है , यह तथ्य ऋग्वेद के ऋषियों से छिपा न रह सका ।ऋग्वेद के मनीषी कवि बहुत से दैवताओं से अधिक समय तक संतुष्ट न रह सके । आर्यो का प्रकृति में व्यक्तित्व का आरोपण अपूर्ण रहा था ।प्रकृति के सब पदार्थ और घटनाएँ एक दूसरे से संबद्ध है, इसलिये उनके अधिष्ठाता , दैवताओं और ऋषियों को मिलाकर एक महाशक्ति की कल्पओं का उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था ।एक और प्रवृत्ति आर्य कवियों में थी जो उन्हें एक देववाद की ओर ले गई ।किसी दैवता की स्तुति करते समय कवि-गण अन्य दैवताओं को भुल सा जाता है  और अपने तात्कालिक आराध्य दैवता को सबसे बड़ा समझने और वर्णन करने लगता है । भक्ति के आवेश में अन्य दैवताओं को भूल जाने का अवसर आते ही वैदिक कवि एक का उपासक बन जाता है
                             अवसरिक एकदेववाद से एकेश्वरवाद की ओर संक्रमण वैदिक ऋषियों के लिये कठिन बात न थी ।ऋग्वेद के कई मंत्र इस बात की साक्षी देते है कि आर्यो में एक ईश्वर की भावना बहुत प्राचीन काल से उत्पन्न हो गई थी ।एक प्रसिद्ध मंत्र ईश्वर की भावना को इस प्रकार व्यक्त करता है – एकं महिमा बहुधा वदन्ति ,
                                अग्निं यमं मातरिश्वानमाहुः
       अर्थात एक ही को विद्वान लोग बहुत प्रकार से पुकारते है , कोई उसे अग्नि कहता है कोई यम और कोई मातरिश्वा (वायु) । यह आर्यो का दार्शनिक एक देववाद है ।अवसरिक एक देववाद को हम काल्पनिक अथवा साहित्यिक एक देववाद कह सकते है ।
                                      नासदीय सूक्त
एक ईश्वरवाद अथवा एक देववाद ही दर्शन शास्त्र का अंतिम शब्द नही है ।यदि जगत ईश्वर से सर्वथा भिन्न है तो इन दौनों में कोई आंतरिक संबन्ध नही हो सकता ।यदि ईश्वर और जगत में विजातीयता है तो हम एक को दुसरे का नियंता कैसे कह सकते है ? जगत के क्रम और नियमबद्धता के लिये एक जगत से बाहर का पदार्थ उत्तदायी नही हो सकता । आश्चर्य तो यह है कि भारतीय विचारकों ने ईसा से हजारों वर्ष पहले दर्शनशास्त्र के इस अत्यन्त गुढ़ सिद्धान्त का अन्वेषण कर डाला था ।ऋग्वेद के नासदीय सूक्त की गणना विश्व साहित्य के ‘आश्चर्यों ‘ में होनी चाहिये ।ऋग्वेद के बाद के तीन चार हजार वर्षों में सृष्टि और प्रलय की रहस्य भावना से आकुल होकर पूर्व या पश्चिम के किसी कवि ने नासदीय सूक्त से अधिक सुन्दर या उतनी सुन्दर भी कविता की रचना की हो , यह मुझे ज्ञात नही है । काव्य और दर्शन दौनों की ऊची से ऊची उड़ाने इस सूक्त में अभिव्यक्त हुई है । यदि आज भारतवासी अपने वेदों और उनके दार्शनिक सिद्धान्तों पर गर्व महसुस करे तो कोई आश्चर्य की बात नही है ।
                   इस भावाकुल रहस्यपूर्ण सूक्त का अनुवाद करने की चेष्टा अनेक लेखको और कवियों ने की है ।अंग्रेज्री में इसके कई पद्यानुवाद है । सूक्त के गुढ़ पद को सचमुच अपने गहन संकेतो से मस्तिष्क के निगुढ़ भाव जाल में फँसा देते है ।मूल सूक्त तक पँहुच पाना थोड़ा मुश्किल है,अतः महत्वपूर्ण सूक्त का पद्यानुवाद देने की कोशीश करती हूँ-
                   न सत् था न असत् उस काल था
                   न रज थी न गगन का शून्य था
                   ढक रहा था क्या ? किसको ? कहाँ
                   सलिल के किस गहरे गर्भ में
                   मृत्यु थी न अमरता थी कहीं
                   दिन न था, न कही पर थी निशा
                   ‘एक’ वह लेता बस साँस था
                   पवन थी न कही कुछ और था
                   तिमिर था तम से आच्छन्न हाँ।
                   सलिल से यह सब कुछ था ढँका
                   बीज लघु या गुप्त पड़ा कही
                   तपस् से जो संवर्द्धित हुवा ।
                   जग उठी उस से द्रुत वासना
                   (या मनोभव – बीज यही अहो   )
                   सत् असत् का है बंधन यही
                   बस यही कोविद कवि कह सके ।
                   किरण जो तिरछी प्रसारित हुई ,
                   वह कहाँ थी ? ऊपर या तले ।
                   महिम रेतस का आधार था ,
                   उपरि या संकल्प , स्वधा तले ?
                   कौन जाने , कौन बता सके
                   कहाँ से यह सृष्टि उदित हुई ?
                   देवगण आये सब बाद ही
                   कह सके फिर कौन रहस्य यह ?
                   सृष्टि यह किस से निःसृत हुई,
                   कब बनी ? अथवा न कभी बनी ?
                   उर्ध्व – नभ – वासी अध्यक्ष भी ,
                   जानता इस को, कि न जानता ?
          इस सुक्त में विश्व की एकता की भावना हम स्पष्ट रुप में व्यक्त हुई पाते है ।आरंभ की ६पंक्तियों में वैदिक कवि कहता है कि आरंभ में कुछ भी नही था , अथवा जो कुछ था उसे सत् असत् आदि नामों से नही पुकारा जा सकता ।‘कुछ नही ‘ से तो ‘कुछ’ की उत्पत्ति नही हो सकती । कवि कहता है कि उस समय वह ‘’एक’’ था जो बिना हवा के अपनी शक्ति से साँस ले रहा था ।उस समय अंधकार अंधकार में लीन था । मानो सब चीजें पानी के गर्भ में थी ।न जाने कैसे उस ‘एक’ में काम बीज का उद्भव हुवा , जिससे सारे संसार की सृष्टि हुई । यह सृष्टि कब और कहाँ से उत्थित हो पड़ी , इसे कौन बता सकता है ? ऊँचे आकाश में जो जगत का अध्यक्ष है ्वह भी , इस सृष्टि रहस्य को जानता है या नही , कौन कहें ।
             एकदेववाद और एकेश्वरवाद से भी असंतुष्ट होकर वैदिक ऋषियों ने विश्व की अनेकता में एकता को देखा ।एक ही सूत्र में संसार की सभी वस्तुएं` पिरोई हुई है ।विभिन्न धाराएँ नियमों के अधीन है , और ये नियम एक दुसरे से संबद्ध है ।यह वैदिक अद्वैतवाद या एकत्ववाद उपनिषदों में और भी स्पष्ट रुप में पुष्पित और पल्लवित हुवा ।वैदिक अद्वैत के विषय में ‘पाल आसन’ नामक विद्वान कहते है कि भारत के विचारक दार्शनिक मार्ग से विश्व की एकता के सिद्धान्त पर पँहुचे । मैक्समुलर की सम्मति में ऋग्वेद के मंत्रों के संग्रह से पहले ही आर्यो की यह धारणा बन चुकी थी कि विश्व ब्रह्माण्ड में एक ही अंतिम सत्य है ।
  पुरुष सूक्त;-     इस सूक्त में पुरुष के बलिदान से संसार की सृष्टि बताई गई है । एक आदिम तत्व  की भावना यहाँ भी प्रबल है । ्यज्ञ करने की इच्छा वाले दैवताओं ने पुरुष पशु को बाँध दिया ।उस पुरुष से विराट् उत्पन्न हुवा , और विराट् से पुरुष , दौनों ने एक दुसरे को उत्पन्न किया ।
              पुरुष का वर्णन बड़ा कवित्वपूर्ण है  । पुरुष के हजारों सिर है , हजारों आँखें , और हजारों चरण । यह पृथ्वी को चारों ओर से छुकर (व्याप्त करके) भी दस अँगुल ऊँचा रहा । पुरुष के एक चरण में सारा ब्रह्मांड समाया हुवा है , और उसके तीन अमृत भरे चरण ऊपर  द्युलोक में स्थित है । भाव यह है कि पुरुष की व्यापकता विश्व ब्रह्माण्ड में ही समाप्त नही हो जाती । जो हुवा है और जो होगा वह सब पुरुष ही है  । एसी पुरुष की महिमा है । पुरुष इससे भी अधिक है । ऋग्वेद में पुरुष का वर्णन पढ़ते समय गीता के विश्वरुप का वर्णन याद आ जाता है । ्ब्रह्माण्ड की सारी उल्लेखनीय शक्तियाँ पुरुष से उत्पन्न हुई है । ‘चन्द्रमा उसके मन से उत्पन्न हुवा , सूर्य उसकी आँख से , उसके मुख से इन्द्र और अग्नि , उसकी साँस से वायु । उसकी नाभि से अन्तरिक्ष उत्पन्न हुवा , उसके सिर से ब्राह्मण , उसके चरणों से पृथ्वी और उसके कानों से दिशाएँ’’  सामाजिक संस्थाओं का स्त्रोत भी पुरुष ही है । ‘ब्राह्मण उसका मुख था, क्षत्रिय उसकी बाँहे , वैश्य उसकी उरु या जाँघे , शुद्र उसके चरणों से उत्पन्न हुवे । उसी पुरुष से ऋग्वेद , यजुर्वेद और सामवेद की उत्पत्ति हुई । उसी पुरुष से छंद (अथर्ववेद) उत्पन्न हुवे । ( ऋचः सामानि जज्ञिरे छंदासि जज्ञिरे तस्मात्  यजुस्तस्मादजायत )
                   इस प्रकार अत्यन्त सरल भाषा में ऋग्वेद का वर्णन ्यहाँ पर किया है , विशेष रुप से विद्यार्थियों के लिये जो संस्कृत में एम. ए करना चाहते है  । मेरी पुरी कोशीश है कि कि इसको पढ़ कर वे अच्छी तरह समझ जायेगे । ऋग्वेद में क्या है  तथा किन सूक्तों का वर्णन किया गया है , इन्द्र , अग्नि ,विष्णु , आदि का अत्यन्त संक्षेप में वर्णन किया है । अग्नि , इन्द्र आदि ऋचाओं की किस प्रकार व्याख्या की जाती है , इसका भी उल्लेख आगे करती हूँ,  मैने भाषा को सरल बनाने की कोशीश की है , उम्मीद है आपको पसंद आयेगी ।    धन्यवाद ।



IN ENGLISH

he three categories of divinities of Rigveda have been divided into-

1-God of the heavens or god-God of this category is very important. Devu, Varuna, the God of the solar system (Sun, Fire, Punish, and Vishnu) and Usha are the main.

2-Devas of space or atmosphere - such as Indra, Marut, and Rainfall.

3-Gods of the earth-like Agni and Soma. In addition to these, when the glory of the yagya increased a little further, then the utensil pus and other useful substances were also becoming gods. Deities were implanted in some expressions such as reverence, praise etc. Bahamaspati is the god of praise.

Varuna-Vedic era is the most famous of the early days Varuna. Varuna is the peaceful god of the Vedas. It is the ruler and ruler of the world. Sit in front of secretaries in his place and reigns Varuna. To please Varun, it is necessary to purify your moral life. Varun's name is loosened, it is the patron of natural and moral rules, those who run against religion get punished by Varuna. On both nature and moral life, there is total control of monopoly rules. The rituals of the Rigveda have been called by the Rishis of the Rigveda. The whole world is created from the end. The protector of the old rituals, the good evil deeds of humans are not hidden from Varun. He is omniscient. He knows the way of birds flying in the sky, he knows the boats running in the sea. He knows the speed of air. He runs Varuna on the road. He knows twelve months, and who knows the day of lavad, also knows him.

                   The son of a friend is always with Varun. A few Suks of Vedas are in the praise of Mitravarun. The element of Vrunda is 'Invisible'. Varuna covered the sky filled with stars. Thus Varuna becomes associated with nature.

                                                Gods of the solar system

The god associated with the Solar System is Sun, Savita, Poetry and Vishnu. The Buddha is also included in the solar deities. Vishnu is the most important among these gods. Vishnu becomes the highest deity in India's north-eastern religious history. The biggest feature of Vishnu is three steps, Vishnu in its footsteps, the Sun turns into the sky and the ocean in all the three regions. The origin of the story of Vamnavatar is the description of the three steps related to Vishnu of Rig Veda. Vishnu has been said to go backward or go away. Vishnu is 'Urugay', he is very much appreciated. Vishnu keeps the entire world in three stages. At the feet of Vishnu, there is the bee of honey. Vishnu holds the three places. The ultimate position of Vishnu is very beautiful. The person who performs the Yajna for the gods goes to the people of Vishnu.

Usha has a special place in the gods of the sky. Usha is a woman god. Aditi is the second woman god of Rig Veda. Which is the mother of Aditya. Some very beautiful Sundar Sutta of Rigveda has been written in praise of Usha. Usha is the daughter of the sun. She shows her breast. It is achalayavana and immortal, and is a gift of immortality. Nisha, a new living person, sometimes creates a serious and compassionate relationship in the heart of mortal beings. Usha opens the door to heaven. She is the sister of the night. 63rd of the third division of the Rig Veda is empty. Rishi is Vishwamitra, and the verse is 'Trishup', 'Indravjra' of northern Sanskrit literature, 'Upendrajjra', etc. has come out from this.

                   O Usha Devi Yashaswini Goddess of Wisdom,

                             Hey Vinay Shalini, yes, yes, yes.

                             Ooh, your father is your immovable youth,

                                      Posts by World Communications Rule

                             Amarna Devi was born on the golden rath,

                                      Free you song

                             Ashu-Grati, Ojaswini Ravi's Kanak Varna,

                                      Affordable carries your robe

Indra - As long as Arya remained calmly, Varun was more respected in him. The need for war made Indra who used to wear thunderbolt and lightning. The god of cent percent is war. Who has sacrificed as soon as it arises and placed himself above all the gods. By the fear of which the heavens and the earth tremble, man is the cumbersome indra. Who stabilized the earth trembling, who stopped the inferior mountains, which holds space and mercy, it is Indra. Who killed the snake named Vrutri and shed seven rivers, which rode fire to the stones, which is fierce in war, it is Indra. Without the help of Indra, no one can win the war. In the war, people call upon Indra, they have surrounded the Arya Samantas named Sudas, they worshiped Indra, so they won, Indra to the earth and Akash salutes, the mountains tremble with fear of him; he is a sinner, he is thunderbolt, and thunderbolt. Who removes the juice of soma, which cooks the Somers, gives it indra aisle. 'O Indra, we are your devout devotee'. We people praise you, including sons. Indra has been said in the Rig Veda as Ahilya-Jar. Murudgan is a companion of Indra.


Agni-Agni Vedic is the most sacred God of Arya. About two hundred whole sugars of the Rig Veda


IN GERMAN


Die drei Kategorien von Gottheiten von Rigveda wurden unterteilt in

1-Himmelsgott oder Gott Dyu -Diese Kategorie ist sehr wichtig Kdyu, Neptun, der Gott des Sonnensystems (Sonne, Feuer, Pusn und Vishnu) und Usha Main.

2-Devas von Raum oder Atmosphäre - wie Indra, Marut und Rainfall.

3-Götter der Erde-wie Agni und Soma. Zusätzlich zu diesen, als die Herrlichkeit der Yagya ein wenig weiter anstieg, wurden die Utensilien Eiter und andere nützliche Substanzen auch Götter. Gottheiten wurden in einige Ausdrücke wie Verehrung, Lob usw. eingepflanzt. Bahamaspati ist der Gott des Lobes.

Varuna-Vedic Ära ist die berühmteste der frühen Tage Varuna. Varuna ist der friedliche Gott der Veden, der Herrscher und Herrscher der Welt. Setze dich vor die Sekretärinnen und regiere Varuna. Um Varun zu gefallen, ist es notwendig, dein moralisches Leben zu reinigen. Varun Name geschmolzen -WRT wird dominiert von durch Varun ist die Hüterin der natürlichen und moralischen Regeln, \ Natur und moralischen Leben Dononpr monolithischen Bedingungen die, die laufen gegen die Religion bestraft. Die Prävalenz von Regeln Rig Veda Weisen hat der Name „Rit“ bezeichnet die ganze Welt Khrit Beschützer der Kvrun Rit entsteht, die zwar nicht die guten und schlechten Taten Varun Menschen verstecken. Er ist allwissend. Er kennt den Weg der Vögel im Himmel, er kennt die Boote im Meer. Er kennt die Geschwindigkeit der Luft. Er fährt Varuna auf der Straße, er kennt zwölf Monate, und wer den Tag des Lavad kennt, kennt ihn auch.

                   Genannt Solar Dawata Varun ist immer mit dem Lob von einigen Sukt Mitravarun die Kved Dhathwarth von Kvrun ist bedeckt Freunde zu stoppen‘. Varuna bedeckt den Himmel voller Sterne und Varuna wird mit der Natur verbunden.

                                                Götter des Sonnensystems

In Verbindung mit Solar Dawata Sonne, Savita, Pusn und Vishnu Kmitr umfasst auch Solar Dawataon Diese Dawataon Vishnu ist der Schlüssel. Indien später religiöse Geschichte Vishnu der Dawata größte Feature Kvishnu Unke drei Schritte werden, Ihre Fußnote Interventionen Vishnu dh Sonne Erde machen Sie einen Spaziergang in den Himmel und Hölle drei Welten. Der Ursprung der Geschichte von Vamnavatar ist die Beschreibung der drei Schritte, die Vishnu von Rig Veda betreffen. Es wird gesagt, dass Vishnu rückwärts geht oder weggeht. Vishnu ist 'Urugay', er wird sehr geschätzt. Zu opfern Vishnu die ganze Welt in drei Stufen Brunnen Honig Stufen Kvishnu hält hält Kvishnu Tinon Loco ist der ultimative Beitrag guter Sport Basman von Kvishnu für Kdewataon sind im Bereich der menschlichen Vishnu.

Usha hat einen besonderen Platz in den Göttern des Himmels. Usha ist ein Frauengott. Aditi ist der zweite weibliche Gott von Rig Veda. Welche Geliebte eines großen ist in Lob der schönen Sukt Usha Kusha Sonne Khrigved geschrieben ist die Mutter des Adityas .Er ihm seine Brust zeigen. Er Aclyuvna und ist unsterblich, und würde das Geschenk der Unsterblichkeit geben Knity gelegentlich über existieren Beziehungen ernst und traurig Ausdruck im Herzen des neuen Bewohner Usha sterblichen Menschen Kusha die Tür des Himmels .Er Nacht Schwester geöffnet. 63. der dritten Abteilung des Rig Veda ist leer. Sage Vishwamitra und Verse ‚Trishtup die Verse Indrvjra‘ Upendravjra usw. Nord Sanskrit-Literatur aus dieser gekommen ist.

                   O Usha Devi Yashaswini, Göttin der Weisheit,

                             Hey Vinay Shalini, ja, ja, ja.

                             Ooh, dein Vater ist deine unbewegliche Jugend,

                                      Beiträge von World Communications Rule

                             Amarna Devi wurde auf der goldenen Rath geboren,

                                      Befreie dein Lied

                             Ashu-Grati, Ojaswini Ravis Kanak Varna,

                                      Erschwinglich trägt deine Robe

Indra-bis Arya friedlich sind dann diejenigen, erfordern Kyuddh Werte Varun von Indra berühmt gemacht, der die Thunderbolt nahm und Blitz Kindra ist Dawata hundertprozentig Krieg. Wer hat geopfert, sobald er auftaucht und sich über alle Götter stellt. Durch die Furcht, vor der die Himmel und die Erde zittern, ist der Mensch der schwerfällige Indra. Wer die Erde zitternd zügelte, wer die unteren Berge stoppte, die den Raum und die Gnade halten, es ist Indra. Welche Vritra Namke Schlange sieben Flüsse Schuppen zu töten, was schrecklich ist das Feuer zu schaffen durch Reiben Steine, dem Krieg, er Indra ist. Es kann kein Krieg ohne Indra unterstützt von Geschädigten in Kyuddhsthl Leute nennen Indra, Feinde Arya Samant Sudas Namen belagert wurde gewinnen, war er Anbetung von Indra, so war sein Sieg, Indra Erde und Akash salutiert, der Berg zittert vor Angst vor ihm, er ist ein Sünder, er ist Donnerkeil und Donnerkeil. Wer den Saft von Soma entfernt, der die Somers kocht, gibt ihm den Indra-Gang. "O Indra, wir sind dein frommer Anhänger". Wir Menschen loben dich, einschließlich der Söhne. Indra wurde im Rig Veda als Ahilya-Jar bezeichnet, Murudgan ist ein Gefährte von Indra.


Agni-Agni Vedic ist der heiligste Gott von Arya. Ungefähr zweihundert Vollzucker des Rig Veda

Comments

Popular posts from this blog

ऋग्वेद एक संक्षिप्त परिचय

अग्नि सूक्त

सोम सूक्त