समास-विचार
समास शब्द का अर्थ है ‘संक्षेप’ में कहना। अर्थात्
दो या दो से अधिक शब्दों को इस प्रकार साथ रख देना कि उनके आकार में कुछ कमी हो जाय,
और अर्थ भी पुरा पुरा मालुम हो। जैसे-
सभायाः पति =सभापति
समस्त पद -
यहाँ सभापति का वही अर्थ है जो ‘सभायाः पति’ का ।किन्तु दोनों को साथ रख देने
से ‘सभायाः’ शब्द के विभक्ति सूचक प्रत्यय याः का लोप हो गया, और इस कारण ‘सभापति’
शब्द सभायाः पति से छोटा हो गया। इस प्रकार छोटा बनाकर रक्खे हुए शब्द को ‘समस्त पद’
कहते है।
विग्रह – किसी समस्त पद को तोड़कर उसका पहले का रुप
दे देना ‘विग्रह’ कहलाता है। विग्रह का अर्थ है- टुकड़े-टुकड़े करना । समस्त शब्द के
टुकड़े करके ही पहले का रुप दिखाया जा सकता है। इसलिए यह विग्रह है।जैसे- धनवाली का
विग्रह ‘धनस्य वाली’ हुआ ।
किन
शब्दों को कैसे और किन के साथ जोड़ सकते है, इसके सूक्ष्म से भी सूक्ष्म नियम संस्कृत
के व्याकरणकारों ने निश्चित किए है। एसा नही है कि जिस शब्द को जब चाहा तब दुसरे के
साथ जोड़ दिया । जैसे- ‘रघुवंश का लेखक कालिदास प्रसिद्ध कवि था’ – इस वाक्य का अनुवाद
हुवा- ‘रघुवशंस्य लेखकः कालिदासः प्रसिद्धः कविः आसीत’ – इस संस्कृत वाक्य में यदि
समास करे तो इस प्रकार होगा ‘रघुवंशलेखककालिदासः प्रसिद्धकविः आसीत्’ । कविः आसीत् में समास नही हुवा , ‘कालिदासः’ और
‘प्रसिद्धः’ में समास नही हुवा।
समास के ६ भेद है- १.तत्पुरुष २ कर्मधारय ३. द्वन्द
४. बहुब्रीहि ५. अव्ययीभाव ६ द्विगु
इन भेदों के नाम पर प्रस्तुत श्लोक है-
द्वन्द्वो
द्विगुरपि चाहं मद् गेहे नित्मव्ययीभावः ।
तत्पुरुष
कर्मधारय येनाहं स्यान्बहुब्रीहिः ॥
यह किसी याचक की किसी दाता से प्रार्थना है- मैं
द्वन्द हूँ अर्थात् मैं दो हूँ (मैं और मेरी स्त्री) मैं द्विगु भी हूँ अर्थात् मेरी
दो गाएँ (बैल) भी है।मेरे घर में नित्य अव्ययीभाव रहता है, अर्थात् मेरे घर में कभी
कुछ खर्च नही होता । क्योंकि खर्च करने को द्रव्य ही नही। इसलिए है पुरुष वह काम करो जिससे मैं बहुब्रीहि हो जाऊँ । अर्थात्
मेरे घर में बहुत सा धान्य हो जाए। ब्रीहि का अर्थ धान्य है
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