अग्नि सूक्त
२)अग्निः पूर्वेभिः
(ऋषिभिरीड्यो नूतनैरुत । स देवाँ एह वक्षति ।
पद पाठ – अग्नि॥
पूर्वेभिः। ऋषिभिः ।ईड्यः । नूतनैः । उत । सः । देवान् । आ । इह । वक्षति ।
संदर्भ- ऋग्वेद
का प्रथम सूक्त अग्नि सूक्त गायत्री छंद में वर्णित है । इसके ऋषि विश्वामित्र मधुच्छन्दा
है । अग्नि दैवता है । प्रस्तुत सूक्त में भगवान वेदपुरुष देवताओं का आव्हान करते हुवे
अग्नि की स्तुति करते है ।
जो अग्नि प्राचीन तथा अर्वाचीन मन्त्रदृष्टा ऋषियों
के द्वारा स्तुत्य है , वह देवताओं को यहाँ यज्ञ में लावे ।
अग्नि- आमंत्रिते च इस सूत्र से ‘ग्नि’ उतात्त रहेगा ।
वक्षति -
तिड़तिड़ इस सूत्र से यह सर्वानुदात्त
है । “वह प्रायणे’’ इस धातु से वक्षति रुप बनता है । मतलब लावे ।
पूर्वेभि – ‘बहुलं छन्दति” इति भिस
ऐतादेशाभाव । पूर्वे +भिस
पूर्वेभिः
शब्द ऋषि का विशेषण होने से तृतीया बहुवचन में प्रयुक्त हुवा है ।
पूर्वेभिः
वेद में ही प्रयुक्त , भारोपीय भाषा का अवशिष्ट रुप , पुनः प्राकृत में प्रयुक्त
।
ऋषिभिः- ऋषि +भिस , ऋषि शब्द ‘ऋष्यान्तकवृष्णिका’ इस सूत्र से निपातन
से सिद्ध होता है ।
‘इड्यः’ - ण्यत् प्रत्यय जोड़ने से ईडयः रुप बनता है । यद्वृत्तान्तित्यम् ।
स्तुत्य- यद्वृत्तान्तित्यम् ।
देवाँ ए ए सन्धि केवल वेद में ।
(३)अग्निना रश्मिश्नवत्पोषमेव दिवेदिवे प्रशसं वीरवत्तमम् ।
पदपाठ-
अग्निना । रश्मि ।अनश्नवत् । पोषम्
ए । दिवेदिवे । प्रशसम् । वीरवत् ।अतमम् ।
प्रस्तुत सूक्त के विश्वामित्र ऋषि है , अग्नि दैवता है, गायत्री
छन्द है ।
अर्थ- अग्नि
के द्वारा( मनुष्य ) प्रतिदिन निम्न वर्धनशील , कीर्तिदायक, एवं अतिशय वीर पुत्रों
से युक्त धन प्राप्त करें ।
व्याख्या- अनश्नवत् – इस वाक्य में तिड़
तिड़ सूत्र के द्वारा सर्वानुदात्त है ।
पोषम्-पुष् धातु से घण् प्रत्यय जुड़ने पर पुष्टिम्
रुप बना ।
मैक्डानल के मत में ‘पोषम्’ पद का अर्थ ‘कीर्तिकारक’
या यशकारक है , पुष्टिकारक नही , क्योंकि इसकी व्याख्या glarious शब्द के द्वारा की
गई है । लेकिन सायण महोदय इसका अर्थ नित्यवर्धनशील अथवा पुष्टि प्रदान करने वाला कहते है ।
यशसम्- यश शब्द
से मत्वर्थीय अच् प्रत्यय लगाकर यशसम् रुप बना ।
वीरवत् तमम्
–पुत्र , भृत्य, आदि वीर पुरुषों में अत्यधिक युक्त ।
वीर +वतुप प्रत्यय लगाने पर वीरवत् रुप , वेद में वीर का अर्थ वीरयति अमित्रान् किया
है
वेद में प्रायः वीर पुत्रों की कामना की गई है
।
दिवेदिवे-
आम्रेडित समास ।
(४)अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरति स इद्देवेषु यच्छति ।
पदपाठ- अग्ने । यम् । यज्ञम् । अध्वरम् । विश्वतः । परिभू
; । असि । स; । इत् । देवेषु ।यच्छति ।
अर्थ- हे अग्नि
जिस हिंसारहित यज्ञ को तुम चारौ और से सफल बनाने वाले हो , वह यज्ञ नि;संदेह देवों
के पास पहुँचता है ।
व्याख्या;- (१) अग्ने – आमंत्रितस्य च इस सूत्र से उदात्त
लोप न होकर ‘अ’ उदात्त ही रहेगा ।
(२) असि- यद्वृत्तान्तनित्यं सूत्र का प्रयोग होगा ।
(३)वेद में यज्ञ और अध्वर शब्द के
भिन्न भिन्न अर्थ प्रयुक्त किये है ।यज्ञ वह कर्म है जिसमें श्रेष्ठों का सत्कार ,
जनता का संगठन , और निर्बलो की समानता होती है ।
अध्वर का अर्थ हे कुटिलता , कपट , छल, हिंसा न हो ।
मैक्डानल के मत में यज्ञ का अर्थ worship और अध्वर का
sacriface है ।
(४)यच्छति – ति ड़् तिड़् सूत्र से सर्वानुदात्त है ।
(५) विश्वतः - विश्व शब्द से सप्तमी अर्थ में तसिल प्रत्यय होकर
विश्वतः रुप सिद्ध हुवा ।
(५)अग्निर्होता कविक्रतुः
सत्यश्चित्रश्रवस्तमः देवो देवेभिरागमत्
।
पदपाठ-
अग्निः । होता । कवि क्रतु । सत्यः । चित्रश्रवस्तमः । देव । देवेभि ; । आ । गमत् ।
अर्थ- हवन करने
वाला अथवा देवताओं का आव्हान करने वाला कवियों या ज्ञानियों की कर्मशक्ति का प्रेरक
, सत्य अविनाशी अत्यन्त विलक्षण यज्ञ से युक्त यह दिव्य अग्नि देव अनेक देवों के साथ
आवें ।
व्याख्या;- होता शब्द का अर्थ सायण के अनुसार देवताओं का आव्हान
करने वाला अथवा हवन करने वाला । मैक्डानल के मत में ‘होता’ शब्द का अर्थ आव्हान करने
वाला ।
कविक्रतु –
कविक्रतु पद ज्ञान और कर्म शक्ति का बोधक है । सायण महोदय के अनुसार क्रान्तप्रज्ञा
वाला अथवा क्रान्तकर्मा अर्थात अतीव अनामत
यज्ञादि कर्मो को जानने वाला ।
चित्रश्रवस्तम;-
चित्रश्रव;+तम अतिशयेण विविध किर्ति युक्त
।
आगमत् – केवल
वैदिक संस्कृत में यह रुप मिलता है ।
(६)यदड़्ग दाशुषे
त्वम् अग्ने भद्रम् करिष्यति । त्वेत्तत्सत्यमड़िगरः
।
व्याख्या- यत् । अड़्गः । दाशुषे । त्वम् । अग्ने । भद्रम्
। करिष्यति । तव । इत् । तत् ।सत्यम् । अड़्गिरः ।
अर्थ- हे प्रिय अग्ने । हवि प्रदान करने वाले के लिये उसके सम्मुख तुम
जो कुछ कल्याण करोगे , हे अड़्गारो में उत्पन्न होने वाले अग्नि यह (कर्म) निःसन्देह
तेरा ही सत्य कर्म है ।
व्याख्या -
दाशुषे – दा थातु से क्वसु प्रत्यय से निष्पन्न
रुप है , सामान्यतया यहाँ अभ्यास अर्थात् थातु
के एक अंग की आवृति का विधान है । तदनुरुप ददाश्वस रुप बनना चाहिये था , परन्तु विदेरशतुवसुः
सूत्र के अनुसार इसमें द्वित्व नही हुवा, अतः दाश्वस् रुप सिद्ध हुवा ।
(२)करिष्यति
- यदवृत्तान्नित्यं इति सूत्रेण सिद्धः ।
(३)अग्ने –
आमन्त्रितस्य च इति सूत्रेण उदात्तलोपा नास्ति ।
(४) अड़्ग-
अभिमुख अर्थात् सम्मुख करने के अर्थ में प्रयुक्त निपात ।
(५) अड़्गिरः
– तिड़ड़्तिड़ इति सूत्रेण सर्वानुदात्तः ।
अड़्गिरा अड़गारा इति यास्कः , एतरेय
ब्राह्मण के अनुसार – हे अड़्गिरस नामक ऋषि के कारणभूत अग्नि । सायण के अनुसार – हे अड़गारों में उत्पन्न होने
वाले अग्नि ।
(६) भद्रम्
– ‘भदि कल्याणे ‘ इति धातोः रक्प्रत्ययेन निपातनाद् सिद्धम् ।
सूक्त नं-
(७) उप
त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तधिया
वयम ।नमो भरन्त एमसि ।
पदपाठ – उप
। त्वा । अग्ने । दिवे दिवे । दोषा वस्त । धिया । वयम् । नमः । भरन्त । आ । इमसि ।
अर्थ – हे अग्ने प्रतिदिन रात्रि मे और दिन में हम सब अपनी बुद्धि से मनः पूर्वक नमस्कार
करते हुवे तेरे समीप पहुँचते है , अथवा अन्न लेकर तुझे अर्पण करने के लिये तेरे समीप
आते है ।
अन्धकार को प्रकाशित करने वाले अग्नि । हम स्तुतियों द्वारा नमस्कार
करते हुवे तुम्हारे पास आते है ।
व्याख्या –
(१) अग्ने – आमन्त्रितस्य च आष्टमिकम् अनुदात्तम्
।
(२) दोषावस्तः -
सायण के अनुसार सायं प्रातः ।
दोषा शब्द रात्रि वाचक है ,
वस्तर कही भी वेद में दिनवाचक नही है , पुनरुक्ति दोष है ।यदि यह द्वन्द समास
है तो पदपाठ में अवग्रह से पृथक निर्दिष्ट नही होता ।
(३)दोषा शब्द अन्तोदात्त है । अतः प्रथम स्तर पर संक्रमन सामान्य नियमों के
अन्तर्गत सम्भव नही है ।क्योंकि उस गण में दोषा शब्द का उल्लेख नही है ।
(४)कार्तिकोज – इस सूत्र के अनुसार
इसका आयुदातत्व सम्भव नही है । क्योंकि इस गण में दोषा शब्द का उल्लेख नही है ।
(५)मैक्डानल के मत में ‘दोषावस्तः”
पद सम्बोधन है । सायण के समान सप्तम्यन्त पद नही है , तथा इसका अर्थ अन्धकार के दुर
करनेवाले या निराशा को हटाने वाले है ।
(६)वस् – तीन अर्थ में , वस-
रहना , वस् - प्रकासित करना , वस्- आच्छादन।
‘क्षपावस्तः” जनिता सूर्यस्य ऋग्वेद
में अन्यत्र इन्द्र के लिये । क्षपा-रात्रि , क्षपायाःवस्त (षष्ठी तत्पुरुष ) इन्द्र ।
(७)दोषावस्तः – षष्ठी तत्पुरुष । यह
पद सम्बोधन पद है , और पद के प्रारम्भ में है ,
षाष्ठिकं उदात्त संचरणं अतः प्रथम स्तर पर उदात्त का संक्रमण हो गया है
। हे रात्रि के प्रकाशक अग्नि ।
(८)इमसि- तिड़ तिड़ इति सूत्रेण सर्वानुदात्तः ।
‘इदन्तोमति’ पाणिनि सूत्र इससे इमसि मस्
की अपेक्षा मसि प्रत्यय का प्रयोग ५ गुणा होता है । वैदिक संस्कृत मे ही इसका प्रयोग
हौता है , लौकिक संस्कृत में इसका प्रयोग नही मिलता ।
इस सूक्त के प्रथम मन्त्र
में ‘ईडे’ पद का कर्ता अहं यह एक वचन में है । मै अग्नि की प्रशंसा करता हूँ । पर इस मन्त्र में ‘वयं त्वा उप एमसि’ हम सब मिलकर
अग्नि के पास उसकी उपासना करने के लिये उपस्थित होते है , एसा सामुहिक रुप में उपासना
करने का आशय व्यक्त किया है ।
(८)राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् वर्धमानम् स्वे दमे ।
पदपाठ-
राजन्तम् । अध्वराणाम् । गोपाम् । ऋतस्य
। दीदिविम् । वर्धमानम् । स्वे ।दमे।
अर्थ- हिंसा
रहित यज्ञों का प्रकाशक , सत्य का रक्षक, स्वयं प्रकाशमान अपने स्थान में बढ़ने वाले (अग्नि के पास हम प्रतिदिन
आते है ।)
व्याख्या- गायत्री
छंद , परन्तु पहली पंक्ति में सातवर्ण होने अध्वराणां में रा का उच्चारण अतिदीर्घ हो
जावेगा । इसी प्रकार तीसरी पंक्ति में स्वे का उच्चारण सुवे करने से पुरे आठ वर्ण हो
जावेगे । ‘ यज्ञ के शासक , ऋत के देदीप्यमान रक्षक , अपने घर में बढ़ने वाले अग्नि
? हम तुम्हारे पास आते है ।
राजन्तम्- स्वयमेव
राजन्ते इति स्वरः । इति सायण महोदय । अन्य विद्वानों के द्वारा – अध्वरों का शासक
, ऋत के रक्षक , अत्यधिक देदीप्यमान , अपने घर में बढ़्ते हुवे –ऋत शब्दोड्यं सायण महोदयेण – ऋत से तात्पर्य प्रकृति का अविरल
नियम ऋतुचक्र आदि ।
अध्वरं – अहिंसा
, लेकिन पूर्व सूक्त ४में यज्ञमध्वरं से अर्थ लेना पड़ा ‘हिंसा र्हित यज्ञों से “ ।
एकविंशति अर्थः व्याख्यातः ।
अध्वराणां-
मैक्डानल ने ‘अध्वराणां” पद का सम्बन्ध सायण की तरह गोपाम् के साथ नही किया , किन्तु
राजन्तम् के साथ किया है , तथा यज्ञों का शासन करने वाला , यह अर्थ किया है ।
ऋतस्य – सत्यस्य
अवश्यभाविनः कर्मघलस्य ।
दीदिविम्-पौनः
पुण्येन भृशं वा द्योतकम् ।(दिव ) धातु दी
धातु वि उपसर्ग क्विन प्रत्यय ।
दमे – ग्रहे
लैटिन
- tomus
| दम (ग्रह )
ग्रीक
- Tomos |
अध्वराणां
– षष्ठयन्तम् कृते हवि अर्थः ।
गोपाम्- संरक्षक
। गवां पालयति गोपाम् (सायेण)
गो+पा =गाय का रक्षक । इस प्रकार कई शब्दों में प्रयुक्त हुवा ।सोमपा-सोम
का रक्षक ।
ऋतस्य – सृष्टि
का अपरिवर्तनशील विधान (स्कन्ध, माधव )
षष्ठयन्तम् इति अर्थे प्रयुक्तः । वेदों
में ऋत का अर्थ अपरिवर्तनशील नियम ही प्रयुक्त
होता है , वेदों के पश्चात ऋत का अर्थ यज्ञ का विधान समझा जाता था ,फिर इसके बाद ‘नैतिक
विधान “ के रुप में प्रयोग होने लगा । आजकल लौकिक संस्कृत में यही ऋत धर्म के रुप में
प्रयुक्त होता है , उसी से ऋतावरी (उषा) ऋतज आदि शब्द बने है ।
सायण कृत अर्थ कर्मफलस्य दीदिविम् ।
(९)स नः पितेव
सूनवे अग्ने सूपायनो भव ।
सचस्वा नः स्वस्तवे ।
पदपाठ – सः
। नः । पिता ड रेव । सूनवे । अग्ने । सु उपायनः
। भव । सचस्व । नः । स्वस्तवे ।
अर्थ- हे अग्निदेव
। वह पिता को पुत्र जैसा , हम सबको सुगमता से प्राप्त होने वाला हो, और हम सबके कल्याण
के लिये सहायक बन ।
व्याख्या- (१)अग्ने – आमन्त्रितस्य च इति सूत्रेण उदात्तलोपः नास्ति ।
सु उपायन – तिड़
तिड़ः इति सूत्रेण सर्वानुदात्तः ।
सायण - अच्छी प्रकार से अर्थात् आसानी से पहुँचने योग्य ।
सुपायन- अच्छी उपहार की वस्तु
, शुभागमन वाला , निकट आना, सुलभ उपाय वाला ।
सचस्व- साथ रहना, तत्पर रहना । मैक्डानल
ने सचस्व का अर्थ साथ रहना इस प्रकार किया है ।
पितेव- नित्य समास इव के प्रयोग से
पूर्व पद प्रकृति स्वरत्व । यथा सू पुत्रार्थ पिता सुप्राय प्रायेण समवेतो भवति।
IN ENGLISH
2) Fire: Prevali (RishiBharidiyo Nutanarata).
Post Text - Fire East africa Rishishee: Idiots. Nutanai E Yes Devan come . Eh Leprosy
Reference- The first Sukta Agni Sukta of Rig Veda is described in Gayatri verses. It is the sage Vishwamitra Madhukhanda. Is the fire god. In the Sukta presented to God, Lord Ved Purusha praises Agni.
The fire which is praiseworthy by the ancient and aristocratic monk rishis, bring the deities here to Yajna.
Agni-Invitees will be 'Gani' awaiting this formula.
This formula is derived from Vaqshati - Tartitt. "He prunes" from this metal to form a brochure. Meaning
Prevabhii - 'Bhulam Chhandati' Iti Bhis Deshaya Bhavana. East + bes
Eastern language: The word is used in the third plural of the sage by the adjective of the sage.
Used in the Eastern Vedas, the residual form of the Indian language, used in the rectum.
Rishi Bhejaa - Rishi + Bhis, the word 'sishtantakavrishnika' of the sage is proven to be faulty with this formula.
Adding 'idi' - suffix suffixes the form: Yudhtantantyam
Laudable
God AA treaty only in the Vedas
(3) Agnina Rashmishnavatapeshmev Diveidew Prasan Veeravatamam
Footnotes - Agnina Rashmi. Treasury a. Dividive Prasham Veeravat .Atam.
The Vishvamitra sage of Sukta is presented, Agni is the God, Gayatri is the Chhand.
Meaning- Get the money from fire (man) every day with the following high-growth, reputable, and very brave sons.
Explanation - Anshnavat - In this sentence, the tired rice is well accepted by the thread.
Make sure to add a solid suffix to the metal-metal metal.
According to McDannell's opinion, the term 'posh' means 'constructive' or 'positive', not convincing, because it has been interpreted by glarious words. But Sir, it means to be meaningful or affirmative.
Yashasam-Yishash has become a success by applying a metaphysical suffix.
Veeravat Tamam - Son, Believer, etc. Highly rich in heroic men.
Veer + Vatavat Rupee on Veeravatta suffix
Vedas are often wished in the Vedas.
Dividive-Amred Component
(4) Agni Yany Yagnam Swarva Vibhabeeti Paribhurti se Iddevshu vyakshti.
Passage - Fire Yum Yagnaam Adarhamaam Globally Gambhhu; . Asi. C; . Such as Deveshu. Neglect.
Meaning: O fire, the non-violent yajna that will make you successful from the charans and the other person, the Yagya is free and the doubts reach the gods.
Explanation; - (1) Fire - Invited by this formula, 'A' will remain 'Sublime' without being sublime.
(2) Asi-Yudhtrantantya Sutra will be used.
(3) The Vedas have used different meanings in the word yagna and the word 'avar'. An understanding is an act in which the fame of the nobles, the organization of the masses, and the equality of Nirbalo.
The meaning of the meaning is not tragedy, deceit, deceit, violence.
According to McDaniel, the meaning of Yajna is the worship and the grace of the lower.
(4) Proclamation - It is well documented.
(5) Worldly - through the word world, in the Saptami sense, it is proven to be universally fulfilled.
(5) Agyarhota Kavikrutu: Satyachitra Shastam: Devo Deviwargamat.
Passage- Fire. Happen . Poet Krutu Truth: Painting condition God . Devaibi; . come . Gumat
Meaning: The divine fire god, with the most incredible yagya, is inspired by the inspiring, true and indestructible poetry of the poets or the intellectuals who challenge the gods, and with the many gods.
Explanation; - The word is meant to challenge the deities according to Sain or as a pilgrim. In the opinion of McDaniel, the meaning of the word 'will' means to challenge.
Kavikrutu - The poetic verse is the connoisseur of knowledge and action power. According to Sain Sridh, the knower of revolution or Krantakarma, which is known as Krantiprna or Krantakarma, which is known as the highest number of eternal prayers.
Painting; -;;;;;;
Agamat - This form is found only in Vedic Sanskrit.
(6) Yadg Dasuasu katam fire bhadram taxism. QuickTime Modifier:
Interpretation- though Adhagah Contamination Cupam Fire. Bhadram Taxation Tove Such as So .Stim. Aadgir
Meaning - O dear fire. Whatever your welfare will be in front of him for the provider, the fire that arises in the idol is indeed your true deeds.
Explanation - Dasuya - Dasu is derived from quasu suffix, usually here is the practice of the practice of the practice, namely the practice of a limb. Accordingly, Dedasusa should have become a form, but according to the Vedarsashatsu Sutras, there is no bias in it;
(2) Characterization - Yadvastanatya This is the formula proven:
(3) Agni - Invitation of the idol of the idolatress, Sublimation Nasti.
(4) Aadg - the main means used to mean the collapse.
(5) Aadgir: - Tirthaddar Iti Thadarayan Saranudadatah
Aggira Abhagara Iti Yaska, according to Etereya Brahmin - due to the fire of the sage named as Agargirus According to Saina - O
IN GERMAN
2) Feuer: Prevali (Rishi Bharidiyo Nutanarata).
Beitragstext - Feuer Ostafrika Rishishee: Idioten. Nutanai E Ja Devan Komm schon. Eh Lepra
Referenz - Die erste Sukta Agni Sukta von Rig Veda wird in Gayatri Versen beschrieben. Es ist der Weise Vishwamitra Madhukhanda. Ist der Feuergott? In der Sukta, die Gott dargebracht wurde, lobt Lord Ved Purusha Agni.
Das Feuer, das von den alten und aristokratischen Mönch Rishis lobenswert ist, bringt die Götter zu Yajna.
Agni-Eingeladene werden "Gani" sein und auf diese Formel warten.
Diese Formel leitet sich von Vaqshati - Taritt ab. "Er pflegt" aus diesem Metall eine Broschüre zu bilden. Bedeutung
Prevabhii - 'Bhulam Chhandati' Iti Bhis Deshaya Bhavana. Osten + Bes
Östliche Sprache: Das Wort wird im dritten Plural des Wortes Salbei verwendet.
Verwendet in den östlichen Vedas, die Restform der indischen Sprache, im Rektum verwendet.
Rishi Bhejaa - Rishi + Bhis, das Wort 'sishtantakavrishnika' des Weisen ist mit dieser Formel fehlerhaft.
Hinzufügen von 'idi' - Suffix suffixiert das Formular: Yudhtantantyam
Lobenswert
Gott AA Vertrag nur in den Veden
(3) Agnina Rashmishnavatapesmev Diveidew Prasan Veeravatamam
Fußnoten - Agnina Rashmi. Schatzamt a. Teilend Prasham Veeravat .Atam.
Der Vishvamitra-Salbei von Sukta wird vorgestellt, Agni ist der Gott, Gayatri ist der Chhand.
Bedeutung - Holen Sie sich das Geld von Feuer (Mann) jeden Tag mit den folgenden hoch gewachsenen, seriösen und sehr tapferen Söhnen.
Erklärung - Anshnavat - In diesem Satz wird der müde Reis vom Faden gut angenommen.
Achten Sie darauf, dem Metall-Metall-Metall ein festes Suffix hinzuzufügen.
Nach McDannells Meinung bedeutet der Begriff "vornehm" "konstruktiv" oder "positiv", nicht überzeugend, weil er durch grelle Wörter interpretiert wurde. Aber Sir, es bedeutet, sinnvoll oder bejahend zu sein.
Yashasam-Yishash ist durch den Einsatz eines metaphysischen Suffixes ein Erfolg geworden.
Veeravat Tamam - Sohn, Gläubiger usw. Sehr reich an heroischen Männern.
Veer + Vatavat Rupee auf Veeravatta Suffix
Veden werden häufig in den Veden gewünscht.
Dividend-Amred-Komponente
(4) Agni Yany Yagnam Swarva Vibhabeeti Paribhurti se Iddevshu vyakshti.
Passage - Feuer Yum Yagnaam Adarhamaam Weltweit Gambhhu; . Asi. C; . Wie z Deveshu, Vernachlässigung.
Bedeutung: O Feuer, das gewaltfreie Yajna, das dich von den Charans und der anderen Person erfolgreich machen wird, das Yagya ist frei und die Zweifel erreichen die Götter.
Erklärung: - (1) Feuer - Durch diese Formel wird 'A' 'erhaben' bleiben, ohne erhaben zu sein.
(2) Asi-Yudhtrantantya Sutra wird verwendet.
(3) Die Veden haben im Wort yagna und im Wort "avar" verschiedene Bedeutungen verwendet: Das weise ist das Karma, in dem eine Ähnlichkeit mit der Vortrefflichkeit des Adels, der Organisation der Massen und des Nirbalos besteht.
Die Bedeutung der Bedeutung ist keine Tragödie, Täuschung, Täuschung, Gewalt.
Laut McDaniel ist die Bedeutung von Yajna die Anbetung und die Gnade der Niederen.
(4) Verkündigung - Es ist gut dokumentiert.
(5) Weltlich - durch die Wortwelt, im Saptami-Sinn, wird bewiesen, dass sie allgemein erfüllt ist.
(5) Agyarhota Kavikrutu: Satyachitra Shastam: Devo Deviwargamat.
Passage - Feuer. War da. Dichter Krutu Wahrheit: Anstrichzustand Gott Devaibi; . Komm schon. Gumat
Bedeutung: Der göttliche Feuergott, mit dem unglaublichsten Yagya, ist inspiriert von der inspirierenden, wahren und unzerstörbaren Poesie der Dichter oder Intellektuellen, die die Götter herausfordern, und mit den vielen Göttern.
Erklärung - Das Wort soll die Gottheiten nach Sain oder als Pilger herausfordern. Nach Ansicht von McDaniel bedeutet die Bedeutung des Wortes "will" eine Herausforderung.
Kavikrutu - Der poetische Vers ist der Kenner der Wissens- und Handlungskraft. Laut Sain Sridh, dem Kenner der Revolution oder Krantakarma, bekannt als Krantiprna oder Krantakarma, die als die höchste Anzahl von ewigen Gebeten bekannt ist.
Malerei; - ;;;;;;
Agamat - Diese Form findet sich nur im vedischen Sanskrit.
(6) Yadg Dasuasu Katam Feuer Bhadram Taxismus. QuickTime Modifikator:
Interpretation - obwohl Adhagah Kontamination Cupam Feuer. Bhadram Besteuerung Tove Wie z Also .Stim. Aadgir
Bedeutung - O liebes Feuer. Was auch immer dein Wohlergehen vor ihm für die Person sein wird, die dir den Nutzen gibt, das Feuer, das im Agargo (Karma) entsteht, ist definitiv dein wahres Karma.
Erklärung - Dasuya - Dasu ist abgeleitet von Quasu Suffix, in der Regel ist hier die Praxis der Praxis der Praxis, nämlich die Ausübung eines Gliedes. Entsprechend sollte Dedasusa eine Form geworden sein, aber gemäß den Vedarsashatsu Sutras gibt es keine Dualität darin, also hat Dashtras Rupa bewiesen.
(2) Charakterisierung - Yadvastanatya Dies ist die Formel bewiesen:
(3) Agni - Einladung des Idols der Idolatress, Sublimation Nasti.
(4) Aadg - das wichtigste Mittel, um den Kollaps zu bezeichnen.
(5) Aadgir: - Tirthaddar Iti Thadarayan Saranudatahah
Aggrira Abhagara Iti Yaska, nach Atreya Brahmin - Das Feuer des Salbei namens Aadgirus Gemäß Saina - O
IN ENGLISH
2) Fire: Prevali (RishiBharidiyo Nutanarata).
Post Text - Fire East africa Rishishee: Idiots. Nutanai E Yes Devan come . Eh Leprosy
Reference- The first Sukta Agni Sukta of Rig Veda is described in Gayatri verses. It is the sage Vishwamitra Madhukhanda. Is the fire god. In the Sukta presented to God, Lord Ved Purusha praises Agni.
The fire which is praiseworthy by the ancient and aristocratic monk rishis, bring the deities here to Yajna.
Agni-Invitees will be 'Gani' awaiting this formula.
This formula is derived from Vaqshati - Tartitt. "He prunes" from this metal to form a brochure. Meaning
Prevabhii - 'Bhulam Chhandati' Iti Bhis Deshaya Bhavana. East + bes
Eastern language: The word is used in the third plural of the sage by the adjective of the sage.
Used in the Eastern Vedas, the residual form of the Indian language, used in the rectum.
Rishi Bhejaa - Rishi + Bhis, the word 'sishtantakavrishnika' of the sage is proven to be faulty with this formula.
Adding 'idi' - suffix suffixes the form: Yudhtantantyam
Laudable
God AA treaty only in the Vedas
(3) Agnina Rashmishnavatapeshmev Diveidew Prasan Veeravatamam
Footnotes - Agnina Rashmi. Treasury a. Dividive Prasham Veeravat .Atam.
The Vishvamitra sage of Sukta is presented, Agni is the God, Gayatri is the Chhand.
Meaning- Get the money from fire (man) every day with the following high-growth, reputable, and very brave sons.
Explanation - Anshnavat - In this sentence, the tired rice is well accepted by the thread.
Make sure to add a solid suffix to the metal-metal metal.
According to McDannell's opinion, the term 'posh' means 'constructive' or 'positive', not convincing, because it has been interpreted by glarious words. But Sir, it means to be meaningful or affirmative.
Yashasam-Yishash has become a success by applying a metaphysical suffix.
Veeravat Tamam - Son, Believer, etc. Highly rich in heroic men.
Veer + Vatavat Rupee on Veeravatta suffix
Vedas are often wished in the Vedas.
Dividive-Amred Component
(4) Agni Yany Yagnam Swarva Vibhabeeti Paribhurti se Iddevshu vyakshti.
Passage - Fire Yum Yagnaam Adarhamaam Globally Gambhhu; . Asi. C; . Such as Deveshu. Neglect.
Meaning: O fire, the non-violent yajna that will make you successful from the charans and the other person, the Yagya is free and the doubts reach the gods.
Explanation; - (1) Fire - Invited by this formula, 'A' will remain 'Sublime' without being sublime.
(2) Asi-Yudhtrantantya Sutra will be used.
(3) The Vedas have used different meanings in the word yagna and the word 'avar'. An understanding is an act in which the fame of the nobles, the organization of the masses, and the equality of Nirbalo.
The meaning of the meaning is not tragedy, deceit, deceit, violence.
According to McDaniel, the meaning of Yajna is the worship and the grace of the lower.
(4) Proclamation - It is well documented.
(5) Worldly - through the word world, in the Saptami sense, it is proven to be universally fulfilled.
(5) Agyarhota Kavikrutu: Satyachitra Shastam: Devo Deviwargamat.
Passage- Fire. Happen . Poet Krutu Truth: Painting condition God . Devaibi; . come . Gumat
Meaning: The divine fire god, with the most incredible yagya, is inspired by the inspiring, true and indestructible poetry of the poets or the intellectuals who challenge the gods, and with the many gods.
Explanation; - The word is meant to challenge the deities according to Sain or as a pilgrim. In the opinion of McDaniel, the meaning of the word 'will' means to challenge.
Kavikrutu - The poetic verse is the connoisseur of knowledge and action power. According to Sain Sridh, the knower of revolution or Krantakarma, which is known as Krantiprna or Krantakarma, which is known as the highest number of eternal prayers.
Painting; -;;;;;;
Agamat - This form is found only in Vedic Sanskrit.
(6) Yadg Dasuasu katam fire bhadram taxism. QuickTime Modifier:
Interpretation- though Adhagah Contamination Cupam Fire. Bhadram Taxation Tove Such as So .Stim. Aadgir
Meaning - O dear fire. Whatever your welfare will be in front of him for the provider, the fire that arises in the idol is indeed your true deeds.
Explanation - Dasuya - Dasu is derived from quasu suffix, usually here is the practice of the practice of the practice, namely the practice of a limb. Accordingly, Dedasusa should have become a form, but according to the Vedarsashatsu Sutras, there is no bias in it;
(2) Characterization - Yadvastanatya This is the formula proven:
(3) Agni - Invitation of the idol of the idolatress, Sublimation Nasti.
(4) Aadg - the main means used to mean the collapse.
(5) Aadgir: - Tirthaddar Iti Thadarayan Saranudadatah
Aggira Abhagara Iti Yaska, according to Etereya Brahmin - due to the fire of the sage named as Agargirus According to Saina - O
IN GERMAN
2) Feuer: Prevali (Rishi Bharidiyo Nutanarata).
Beitragstext - Feuer Ostafrika Rishishee: Idioten. Nutanai E Ja Devan Komm schon. Eh Lepra
Referenz - Die erste Sukta Agni Sukta von Rig Veda wird in Gayatri Versen beschrieben. Es ist der Weise Vishwamitra Madhukhanda. Ist der Feuergott? In der Sukta, die Gott dargebracht wurde, lobt Lord Ved Purusha Agni.
Das Feuer, das von den alten und aristokratischen Mönch Rishis lobenswert ist, bringt die Götter zu Yajna.
Agni-Eingeladene werden "Gani" sein und auf diese Formel warten.
Diese Formel leitet sich von Vaqshati - Taritt ab. "Er pflegt" aus diesem Metall eine Broschüre zu bilden. Bedeutung
Prevabhii - 'Bhulam Chhandati' Iti Bhis Deshaya Bhavana. Osten + Bes
Östliche Sprache: Das Wort wird im dritten Plural des Wortes Salbei verwendet.
Verwendet in den östlichen Vedas, die Restform der indischen Sprache, im Rektum verwendet.
Rishi Bhejaa - Rishi + Bhis, das Wort 'sishtantakavrishnika' des Weisen ist mit dieser Formel fehlerhaft.
Hinzufügen von 'idi' - Suffix suffixiert das Formular: Yudhtantantyam
Lobenswert
Gott AA Vertrag nur in den Veden
(3) Agnina Rashmishnavatapesmev Diveidew Prasan Veeravatamam
Fußnoten - Agnina Rashmi. Schatzamt a. Teilend Prasham Veeravat .Atam.
Der Vishvamitra-Salbei von Sukta wird vorgestellt, Agni ist der Gott, Gayatri ist der Chhand.
Bedeutung - Holen Sie sich das Geld von Feuer (Mann) jeden Tag mit den folgenden hoch gewachsenen, seriösen und sehr tapferen Söhnen.
Erklärung - Anshnavat - In diesem Satz wird der müde Reis vom Faden gut angenommen.
Achten Sie darauf, dem Metall-Metall-Metall ein festes Suffix hinzuzufügen.
Nach McDannells Meinung bedeutet der Begriff "vornehm" "konstruktiv" oder "positiv", nicht überzeugend, weil er durch grelle Wörter interpretiert wurde. Aber Sir, es bedeutet, sinnvoll oder bejahend zu sein.
Yashasam-Yishash ist durch den Einsatz eines metaphysischen Suffixes ein Erfolg geworden.
Veeravat Tamam - Sohn, Gläubiger usw. Sehr reich an heroischen Männern.
Veer + Vatavat Rupee auf Veeravatta Suffix
Veden werden häufig in den Veden gewünscht.
Dividend-Amred-Komponente
(4) Agni Yany Yagnam Swarva Vibhabeeti Paribhurti se Iddevshu vyakshti.
Passage - Feuer Yum Yagnaam Adarhamaam Weltweit Gambhhu; . Asi. C; . Wie z Deveshu, Vernachlässigung.
Bedeutung: O Feuer, das gewaltfreie Yajna, das dich von den Charans und der anderen Person erfolgreich machen wird, das Yagya ist frei und die Zweifel erreichen die Götter.
Erklärung: - (1) Feuer - Durch diese Formel wird 'A' 'erhaben' bleiben, ohne erhaben zu sein.
(2) Asi-Yudhtrantantya Sutra wird verwendet.
(3) Die Veden haben im Wort yagna und im Wort "avar" verschiedene Bedeutungen verwendet: Das weise ist das Karma, in dem eine Ähnlichkeit mit der Vortrefflichkeit des Adels, der Organisation der Massen und des Nirbalos besteht.
Die Bedeutung der Bedeutung ist keine Tragödie, Täuschung, Täuschung, Gewalt.
Laut McDaniel ist die Bedeutung von Yajna die Anbetung und die Gnade der Niederen.
(4) Verkündigung - Es ist gut dokumentiert.
(5) Weltlich - durch die Wortwelt, im Saptami-Sinn, wird bewiesen, dass sie allgemein erfüllt ist.
(5) Agyarhota Kavikrutu: Satyachitra Shastam: Devo Deviwargamat.
Passage - Feuer. War da. Dichter Krutu Wahrheit: Anstrichzustand Gott Devaibi; . Komm schon. Gumat
Bedeutung: Der göttliche Feuergott, mit dem unglaublichsten Yagya, ist inspiriert von der inspirierenden, wahren und unzerstörbaren Poesie der Dichter oder Intellektuellen, die die Götter herausfordern, und mit den vielen Göttern.
Erklärung - Das Wort soll die Gottheiten nach Sain oder als Pilger herausfordern. Nach Ansicht von McDaniel bedeutet die Bedeutung des Wortes "will" eine Herausforderung.
Kavikrutu - Der poetische Vers ist der Kenner der Wissens- und Handlungskraft. Laut Sain Sridh, dem Kenner der Revolution oder Krantakarma, bekannt als Krantiprna oder Krantakarma, die als die höchste Anzahl von ewigen Gebeten bekannt ist.
Malerei; - ;;;;;;
Agamat - Diese Form findet sich nur im vedischen Sanskrit.
(6) Yadg Dasuasu Katam Feuer Bhadram Taxismus. QuickTime Modifikator:
Interpretation - obwohl Adhagah Kontamination Cupam Feuer. Bhadram Besteuerung Tove Wie z Also .Stim. Aadgir
Bedeutung - O liebes Feuer. Was auch immer dein Wohlergehen vor ihm für die Person sein wird, die dir den Nutzen gibt, das Feuer, das im Agargo (Karma) entsteht, ist definitiv dein wahres Karma.
Erklärung - Dasuya - Dasu ist abgeleitet von Quasu Suffix, in der Regel ist hier die Praxis der Praxis der Praxis, nämlich die Ausübung eines Gliedes. Entsprechend sollte Dedasusa eine Form geworden sein, aber gemäß den Vedarsashatsu Sutras gibt es keine Dualität darin, also hat Dashtras Rupa bewiesen.
(2) Charakterisierung - Yadvastanatya Dies ist die Formel bewiesen:
(3) Agni - Einladung des Idols der Idolatress, Sublimation Nasti.
(4) Aadg - das wichtigste Mittel, um den Kollaps zu bezeichnen.
(5) Aadgir: - Tirthaddar Iti Thadarayan Saranudatahah
Aggrira Abhagara Iti Yaska, nach Atreya Brahmin - Das Feuer des Salbei namens Aadgirus Gemäß Saina - O
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